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Fatehpur News: फतेहपुर में ‘सरकारी भूत’ घोटाला ! जिंदा बुजुर्गों को कागजों में मारकर पेंशन डकारने की साजिश

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के फतेहपुर (Fatehpur) में सरकारी सिस्टम ने चार बुजुर्गों को जिंदा ही भूत बना दिया और कागजों में मृत घोषित करते हुए प्रमाणपत्र जारी कर दिया. अब बुजुर्ग अपने ही अस्तित्व की तलाश में गणेश परिक्रमा करने को मजबूर हैं. 

Fatehpur News: फतेहपुर में ‘सरकारी भूत’ घोटाला ! जिंदा बुजुर्गों को कागजों में मारकर पेंशन डकारने की साजिश
फतेहपुर में चार बुजुर्गों को सिस्टम ने बना दिया भूत (प्रतीकात्मक फोटो): Image Credit Original Source

Fatehpur News: सरकारी तंत्र की लापरवाही और भ्रष्टाचार का एक अनोखा मामला उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के फतेहपुर जिले में सामने आया है, जहां सरकारी फाइलों में चार बुजुर्गों को 'मरवा' दिया गया.

ये बुजुर्ग पूरी तरह स्वस्थ और जीवित थे, मगर समाज कल्याण विभाग की कागजी कारस्तानी ने इन्हें मृत घोषित कर उनकी वृद्धावस्था पेंशन बंद कर दी. लेकिन असली दिलचस्पी तब आई जब ये "सरकारी भूत" खुद अधिकारियों के सामने अपनी ‘आत्मा की उपस्थिति’ दर्ज कराने पहुंच गए. 

सरकारी कागजों में ‘मृत’, लेकिन हकीकत में जिंदा 

हर साल समाज कल्याण विभाग वृद्धावस्था पेंशन पाने वालों का सत्यापन करता है, लेकिन इस बार सत्यापन की प्रक्रिया कुछ ज्यादा ही ‘आधुनिक’ हो गई. हथगाम ब्लॉक की ग्राम पंचायत दुदौली जलालपुर के साजिद अली, इटैली के शंकर, शिवरी की सोमवती और बरदरा के रामपाल को बिना किसी ठोस जांच के कागजों में मृत घोषित कर दिया गया.

पंचायत सचिवों ने बड़ी सहजता से इन बुजुर्गों को परलोक पहुंचा दिया और फरवरी में समाज कल्याण विभाग को रिपोर्ट भेज दी. रिपोर्ट मिलते ही सरकारी सिस्टम ने अपनी ‘श्रद्धांजलि’ देते हुए उनकी पेंशन रोक दी. 

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कई दिनों तक जब पेंशन नहीं आई, तो बुजुर्गों ने बैंकों और अधिकारियों से पूछताछ शुरू की. यहां तक कि अपने खातों का बैलेंस भी चेक कराया, लेकिन पैसा तो क्या, उनकी ‘मौजूदगी’ ही सिस्टम में नहीं दिखी. फिर सामने आया इस सरकारी ‘मौत के खेल’ का असली सच.

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"हम जिंदा हैं साहब!"–सरकारी भूतों की फरियाद

अब सवाल यह था कि जब सरकार ने इन्हें मृत मान लिया है, तो ये खुद को जिंदा कैसे साबित करें? एक बार आदमी असल जिंदगी में मरे तो भी लोग यकीन कर लेते हैं, मगर सरकारी कागजों में मर जाने के बाद जिंदा होने का दावा करना अपने आप में अजूबा था. लेकिन चारों बुजुर्गों ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी फरियाद लेकर मुख्य विकास अधिकारी (CDO) पवन कुमार मीणा के पास पहुंच गए. 

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बुजुर्गों ने अधिकारियों के सामने खड़े होकर हाथ जोड़ लिए और कहा, "साहब, हम जिंदा हैं! सांस ले रहे हैं! फिर भी सरकार ने हमें मार दिया. उनकी आंखों में आंसू थे और मन में सवाल?अगर सरकारी कागजों में हम मर चुके हैं, तो हमारी पेंशन कौन खा रहा है?

अधिकारियों के लिए भी यह दृश्य किसी आश्चर्य से कम नहीं था. आमतौर पर लोग सरकारी दफ्तरों में राशन, आवास या किसी और सरकारी योजना के लिए फरियाद लेकर आते हैं, लेकिन यहां मामला ही उल्टा था. लोग खुद को जिंदा साबित करने के लिए लड़ रहे थे. 

सत्यापन निकला झूठा, अब दोषियों पर कार्रवाई की तलवार

CDO ने जब मामले की जांच कराई, तो पाया कि पंचायत सचिवों ने बिना किसी ठोस आधार के इन बुजुर्गों को मृत घोषित कर दिया था. जांच में साबित हुआ कि यह केवल लापरवाही नहीं थी, बल्कि एक गंभीर प्रशासनिक अपराध था. 

इसके बाद जिला विकास अधिकारी (DDO) प्रमोद सिंह चंद्रौल ने समाज कल्याण अधिकारी को नोटिस जारी कर एक सप्ताह के भीतर जवाब देने का आदेश दिया. साथ ही चेतावनी दी कि यदि दोषियों की जवाबदेही तय नहीं हुई, तो संबंधित अधिकारियों के वेतन से इन बुजुर्गों की पेंशन की भरपाई कराई जाएगी और विभागीय कार्रवाई की जाएगी.

गलती या भ्रष्टाचार? सरकारी तंत्र पर उठे सवाल

इस पूरे मामले ने सरकारी सिस्टम पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. यह सिर्फ एक गलती थी या फिर किसी भ्रष्टाचार का हिस्सा? क्या यह योजना के पैसों की हेराफेरी के लिए की गई चाल थी? अगर यह चार बुजुर्ग खुद को जिंदा साबित करने के लिए न लड़ते, तो उनकी पेंशन हमेशा के लिए बंद हो जाती.

बुजुर्गों का कहना है कि अगर वे इस ‘सरकारी हत्या’ के खिलाफ नहीं लड़ते, तो कुछ सालों में उनकी जमीन-जायदाद के कागजों में भी वे गायब हो जाते. सरकारी तंत्र का यह हाल देखकर वे डर गए हैं कि अगर अगली बार ऐसी गलती दोबारा हुई, तो शायद वे सच में अपने अधिकारों से हमेशा के लिए वंचित हो जाएंगे. 

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