Barsana Latth Maar Holi: बरसाना की लट्ठमार होली क्यों प्रसिद्ध है ! क्यों खेली जाती है लट्ठमार होली, जानिए इस परंपरा को
बृजमण्डल (Brij mandal) की होली (Holi) देश भर में प्रसिद्ध है. मथुरा (Mathura) की होली की शुरुआत एक माह पहले से ही शुरू हो चुकी है. मथुरा में कई प्रकार की होली खेली जाती है जिसमें से एक होली लट्ठमार होली (Lathmar होली) है, खास तौर पर यह लट्ठमार होली बरसाना (Barsana) और नंद गांव (Nandganv) में खेली जाती है. बरसाना में आज होरियारिनो ने लहंगा चुनरी ओढ़कर जमकर होरियारों के साथ लट्ठमार होली खेली. चलिए आपको बताते हैं कि बरसाने और नंद गांव की इस होली को लठमार होली क्यों कहा जाता है और यह परम्परा कबसे चली आ रही है.
बरसाना की होली देखने देश-विदेश से उमड़े लोग
इन दिनों बृजमंडल (Brijmandal) की होली (Holi) के अलग-अलग स्वरूप दिखाई दे रहे हैं. मथुरा (Mathura) यानी कान्हा नगरी में खेली जाने वाली होली देश में प्रसिद्ध है. इस होली को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं. मथुरा में कई प्रकार की होली खेली जाती है. खास तौर पर मथुरा के बरसाना (Barsana) और नंदगांव (Nandganv) में अनोखे अंदाज में होली खेली जाती है. कान्हा नगरी में होली की शुरुआत फूलों की होली से होती है जो रंगों की होली से समाप्त होती है. इस बीच कई प्रकार की होली मथुरा के अलग-अलग जगहों पर खेली जाती है. मथुरा की होली में खास तौर से बरसाने की होली का विशेष महत्व है यहां पर एक लड्डू होली और एक लठमार होली खेली जाती है. इसके साथ ही नंद गांव में भी लठमार होली खेली जाती है.
होरियारों पर बरसीं प्रेम रस की भीगी लाठियां
आज बरसाना में धूमधाम से लठमार होली खेली गई. जहां महिलाएं यानी होरियारिंनो ने पारंपरिक अंदाज में लहंगा-चुनरी ओढ़कर हाथों में लट्ठ लेकर मजाकिया अंदाज में होरियारों को लाठी से पीटा. फिर होरियारे ढाल बनाकर अपने को बचाते है. फाग गाये जाते है, जमकर अबीर गुलाल उड़ाया जाता है और खुशियां मनाई जाती है. इसके साथ ही नंद गांव में कल यानी 19 मार्च को यह लठमार होली खेली जाएगी इस लठमार होली को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं.
श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम का प्रतीक
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लट्ठमार होली के पीछे श्री कृष्ण और राधा से जुड़ी हुई है. भगवान श्री कृष्ण बरसाना गांव राधा जी से मिलने गए थे जहां वे राधा व उनकी सखियों को चिढ़ाने लगे इसके बाद राधा जी और उनकी सखियों ने श्री कृष्ण और अन्य ग्वालो को लाठी लेकर मजाक वाले अंदाज में पीटा तब उन्होंने ढाल बनाया. तब से यह लट्ठमार होली के नाम से जानी जाने लगी और मथुरा के बरसाने की लट्ठ मार होली की रूप में प्रसिद्ध हो गई. लठमार होली करीब 5000 वर्ष पुरानी है. इस दिन होली में गीत गायन होता है हर तरफ बृज की संस्कृति की झलक दिखाई देती है.
होरियारों को ठंडाई पिलाई जाती है
इस दिन हुरियारिनें सुबह से परंपरागत लहंगा- चुनरी पहनकर लट्ठ मार होली की तैयारी में जुट जाती है. प्रिया कुंड पर बरसाना के गोस्वामी समाज के मुखिया के नेतृत्व में स्वागत किया गया और भांग की ठंडाई में केवड़ा, गुलाब जल और मेवा घोल कर हुरियारों को पिलाया. यहां हुरियारों ने अपने- अपने सिर पर पाग बांधने के बाद खेल की शुरुआत करते है.
रंगों से सरोबार हुईं बरसाने की गलियाँ
बरसाना में करीब एक हजार हुरियारिनें हाथ में लट्ठ लेकर मैदान में पहुंच गईं. नंदगांव से भी इतने ही ग्वाले आए. बरसाना की गलियों में हुरियारिनें जिधर घूमती, खलबली सी मच जातीं पता नहीं कब किस पर लाठी बरसने लगे, यहां राधा रानी की सखी का कहना है कि उनके मन में नंदगांव के हुरियारों के प्रति प्यार उमड़ता है लट्ठ नहीं ये तो प्यार से पगी लाठी है जो वार तो करती है, मगर दर्द नहीं, उन्होंने कहा कि इससे ज्यादा उल्लास और खुशी का मौका और कुछ नहीं हो सकता.