Story Of Dacoit Dadua: जानिए बुंदेलखंड के इस खूंखार डाकू 'ददुआ' की कहानी ! कैसे बना शिवकुमार पटेल से 'ददुआ'?
चंबल (Chambal) के बीहड़ में खूंखार डाकुओं (Dreaded Dacoits) का वर्चस्व कई दशकों पहले तक रहा. ज्यादातर यह डाकू एमपी-यूपी के बीहड़ों में ही अपना डेरा जमाये रहे. एक और कुख्यात डाकू जिसके बारे में कहा जाता रहा कि बीहड़ से बैठे-बैठे सरकारें बना देता था. यह कुख्यात डाकू और कोई नहीं चित्रकूट-बुंदेलखंड में आतंक का पर्याय रहा ददुआ था. एक दिन में 9 हत्याएं (Murdered) करने वाले इस कुख्यात डाकू की पूरी कहानी (Story) जानिए.
खूंखार डाकू ददुआ का कभी था इस क्षेत्र में आतंक
हमारे देश में कई खूंखार डकैत (Dreaded Dacoits) मोहर सिंह, माधव सिंह, फूलन देवी, विक्रम मल्लाह, लाला राम, निर्भय गुर्जर, वीरप्पन जैसे नाम आज भी सुन लें तो लोगों में मारे दहशत से लोगों की जान अटक जाती थीं. यह करीब 3 से 4 दशक पहले की बात है. इन्हीं में से एक नाम और बाद में बहुत चर्चा में आया जिसने चित्रकूट-बुंदेलखंड के जंगलों से अपना वर्चस्व बनाया. यह डाकू और कोई नहीं शिव कुमार पटेल (Shiv Kumar Patel) उर्फ ददुआ (Dadua) था. जिसके ऊपर 200 अपहरण, डकैती, करीब 150 हत्याएं समेत 500 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज थे. ददुआ का उस बुंदेलखंड क्षेत्र में इतनी दहशत थी कि लोग बाँदा-चित्रकूट जाने में डरा करते थे.
कैसे बना शिवकुमार पटेल ददुआ?
दरअसल शिवकुमार पटेल (Shiv Kumar Patel) खूंखार और कुख्यात डाकू (Dreaded Dacoit) कैसे बन गया इसके बारे में आपको हम विस्तार से बताएंगे. ददुआ चित्रकूट के देवकली गांव में रहता था. वर्ष 1972 में गांव में एक जमींदार ने उसके पिता को उसी के सामने निर्वस्त्र कर घुमाया और उसकी हत्या कर दी थी. यह बात ददुआ के मन में घर कर गयी. बदले (Revenge) की भावना के साथ शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ (Dadua) बागी बनकर हाथों में हथियार (Weapons) उठा लिया. लेकिन उसे हथियार चलाने के गुर नहीं आते थे.
फिर चंबल के खूंखार डाकू राजा रंगोली (Raja Ragoli) और गया कुर्मी (Gaya Kurmi) से उसकी मुलाकात हुई और वह उनके गिरोह में शामिल हो गया. जहां दोनों से उसने अपराध जगत (Crime) से जुड़े तमाम पैंतरे सीखे और राजनीति भी सीखी. इसके साथ ही उस दरमियान तेंदू के पत्तों का बिजनेस भी उनसे सीखा. एक समय ऐसा रहा कि बिना ददुआ के तेंदू के पत्तों (Tendu Leaf) को तोड़ने की हिम्मत किसी की भी नहीं थी. वर्ष 1983 में राजा रगोली को मार दिया गया था और गया कुर्मी ने आत्मसमर्पण कर लिया.
बदले की भावना लिए कर दी एक दिन में 9 हत्याएं
अब ददुआ अपने दोनों गुरुओं से सारे आपराधिक गुर सीख चुका था. सारी कमांड उसने सँभाल ली. फिर बुंदेलखंड क्षेत्र के जंगलों में उसने अपना डेरा जमाया. उसकी दहशत इतनी थी कि पूछिये मत. उसने अपना गिरोह बढ़ाया. यही नहीं पिता की हत्या का बदला लेने के लिए उसने वर्ष 1986 में एक दिन में 9 हत्याएं कर डाली तबसे ददुआ चर्चा में आया. फिर शुरू हुई अपराध जगत में ददुआ की एंट्री. 32 सालों तक ददुआ का बुंदेलखंड में रहा. कहा जाता था कि ददुआ लोगो की आँख तक निकाल लेता था. खौफनाक डाकू का आतंक उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी रहा. तेंदू के पत्तो का कारोबार उसका मुख्य हथियार था. इसके लिए वह कारोबारियों से फिरौती वसूलता नहीं देने पर जान से मार देता था.
जंगल के अंदर से ही राजनीति में माहिर
कहा जाता था कि ददुआ जंगल से बैठे-बैठे सरकारें बना देता था. राजनीति से जुड़े नेता उसके पास रात के अंधेरे में चोरी-छिपे जाया करते थे. जिससे वे क्षेत्र का वोट ले सकें. गांव वालों की भला मजाल थी कि वे ददुआ के कहने पर किसी और को वोट दें. ददुआ के द्वारा तय किये हुए नेता को जनता वोट देने लगी थी. विधायक हो या प्रधान यह सब ददुआ ही तय करता था. बुंदेलखंड में ददुआ का जो दबदबा रहा उतना किसी डकैत का नहीं रहा. ददुआ का नाम शिव कुमार पटेल था वह कुर्मी समाज से आता था. कुर्मी समाज के लोग ददुआ को भगवान की तरह पूजते थे. ददुआ भी जहां कुख्यात और खूंखार था, वहीं लोगों की मदद भी करता था. बीएसपी नेताओ से उसका मेलजोल रहा. फिर 2004 में सपा नेताओं के साथ मिलकर कई बीएसपी नेताओ की हत्या करवाने में नाम आया था.
वर्ष 2007 में जब बीएसपी सरकार बनी तो उसके खात्मे के लिए यूपी एसटीएफ को फील्ड पर उतारा. चित्रकूट के जंगलों में एसटीएफ (Stf) की टीमें उसे पकड़ने के लिए लगी रही. हर बार उसे सूचना मिल जाती थी और वह सही सलामत निकल जाता था. ददुआ के ऊपर 10 लाख रूपये का इनाम घोषित किया था. आखिरकार वर्ष 2007 में एसटीएफ ने मुठभेड़ में इस कुख्यात और खूंखार डाकू ददुआ (Dadua) को मार गिराया.
ददुआ का फतेहपुर में बना है मन्दिर
एक तरफ ददुआ के नाम से लोगों के मन में खौफ था, वहीं दूसरी तरफ फतेहपुर के इस गांव में ददुआ का एक मंदिर (Dadua Temple) भी है जहां लोग उसकी पूजा भी करते हैं यह मंदिर फतेहपुर (Fatehpur) के नरसिंहपुर (Narsinghpur) गांव में बना हुआ है. कहा जाता था कि एक बार ददुआ इस जगह पर फंस गया था और उसने यहां भगवान से प्रार्थना की थी, कि यदि वह यहां से सही सलामत बच गया तो यहां मंदिर का निर्माण कराएगा, ददुआ वहां से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भागने में कामयाब रहा और उसने आखिरकार यहां पर मन्दिर का निर्माण कराया. मंदिर में ददुआ और उसकी पत्नी केतकी (बड़ी) की प्रतिमा लगी हुई है. दूर दूर से लोग इस मंदिर को देखने आते हैं, यहां के लोग उसकी पूजा करते हैं और भगवान की तरह इनको पूजते हैं.