Fatehpur News: जब 19 साल बाद भाई को देख फूट-फूटकर रोया भाई ! पिता का साया उठ चुका था, सालों टकटकी लगाए रही मां
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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के फतेहपुर (Fatehpur) में बचपन में बिछड़े भाई को 19 साल बाद देख कर बड़ा भाई फूट-फूटकर रोने लगा. बेटे के आने की खुशी में मां-बहन की पथराई आंखों से निकली अश्रु की धारा ने मानो नया जीवन पा लिया हो. बचपन की चमक वक्त के थपेड़ों में कुम्हला गई थी..रुंधे गले से मां ने कहा इतने दिन कहां था बेटा..सब कुछ बदल गया है..जानिए जाफरगंज क्षेत्र के अंगदपुर निवासी जितेंद्र कुमार की कहानी..
Fatehpur News: सूरज अस्ताचल की ओर बढ़ रहा था तरुवर से बिखरी लालिमा जिस्म से होते हुए मन में अंधेरा बिखेरे रही थी. बाजार में बैठे हुए लगभग 12 घंटे बीत चुके थे. आशा की कोई किरण नज़र नहीं आ रही थी.मन में एक कौंध उठी क्या जिस रास्ते से आया था वहीं फिर से लौटना पड़ेगा.
तभी ऊहापोह में एक युवक दिखा चेहरा देखते ही लगा ये तो मेरा सहपाठी है. आवाज देते ही शक यकीन में बदल गया. पास जाकर नाम बताया तो उसे यकीन नहीं हुआ..घर का रास्ता भूल गया हूं भाई पहुंचा दोगे..साथी के साथ घर पहुंचते ही दोस्त ने किवाड़ पर दस्तक दी..भइया ये आपका भाई है..19 साल बाद घर आया है..घर के सभी लोग स्तब्ध रह गए..सवाल पर सवाल होने लगे..उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि वो आ सकता है..
एकाएक भाई फूट-फूटकर रोने लगा..बिछड़े भाई को गले लगाकर करुण रस की धारा आंखों से बहने लगी..पड़ोसी भी ये दृश्य देखकर भाव विभोर हो उठे..ये कहानी है फतेहपुर के जाफरगंज क्षेत्र के अंगदपुर निवासी जितेंद्र की जो परिवार से बिछड़कर रक्षाबंधन के दिन अपने घर पहुंचा था..
15 की उम्र में पढ़ाई छोड़ मामा के साथ दिल्ली पहुंचा था जितेंद्र
फतेहपुर (Fatehpur) के जाफरगंज थाना (Jafarganj Thana) क्षेत्र के अंगदपुर निवासी जितेंद्र कुमार पुत्र सुंदरलाल दिवाकर की कहानी उसके स्कूली दिनों से शुरू होती है. उसकी मां का नाम सहोदरा, छोटी बहन निर्मला और बड़ा भाई मनोज कुमार है. जितेंद्र पड़ोस के गांव सुल्तानगढ़ के सरस्वती इंटर कॉलेज में नवीं का छात्र था.
बताया जा रहा है कि उसका पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगता था. एक दिन स्कूल की छुट्टी होने के बाद वो अपने ननिहाल ललौली क्षेत्र के मर्दनपुर चला गया और अपने मामा रामसजीवन से कहने लगा कि मुझे भी आपके साथ दिल्ली जाना है. जितेंद्र के मामा दिल्ली के लाजपत नगर की एक फैट्री में काम करते थे.
भांजे ने जब जिद किया तो मामा ने अपने बहन और बहनोई से साथ ले जाने के बारे में पूछ कर उसे ले गए..कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद जितेंद्र ने मामा रामसजीवन से कहा कि मेरा पढ़ाई मन नहीं लगता है मुझे काम करना है.. भांजे की जिद के चलते उसे टेलर की दुकान में रखवा दिया.
जब दिल्ली की चकाचौंध में खो गया भांजा
फतेहपुर के गांव से देश की राजधानी पहुंचे जितेंद्र के लिए सब कुछ नया था. दिल्ली की चकाचौंध और दौड़ती भागती जिंदगी को किशोरावस्था का जितेंद्र स्वर्ग मान रहा था..एक दिन टेलर की दुकान में काम करते हुए जब मास्टर ने किसी काम से बाहर भेजा तो जितेंद्र फिर वापस नहीं लौटा.
दुकान के मालिक कर्मचारियों ने उसकी खोजबीन की लेकिन उसका पता नहीं चला..दुकान के मालिक ने उसके मामा रामसजीवन को पूरी बात बताई. मामा ने भी भरसक प्रयास किया बहन-बहनोई और बड़ा भांजा भी दिल्ली आकर उसे खोजने लगे लेकिन जितेंद्र का कुछ पता नहीं चला..गांव से निकले जितेंद्र के लिए दिल्ली के रास्ते भुलभुलैया साबित हुए.
जब दो भागों में बंटी जितेंद्र की कहानी..फैक्ट्री में नौकरी..उठा पिता का साया
दिल्ली में अचानक गायब हुए जितेंद्र की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म की तरह नज़र आने लगी..एक तरफ अपने अस्तित्व की तलाश करता 15 वर्षीय जितेंद्र और दूसरी तरफ उसका परिवार जो उसकी खोज करते हुए फतेहपुर की ट्रेन में बैठ चुके थे..
जितेंद्र कई दिनों तक भटकता रहा तभी उसे एक व्यक्ति मिला..घबराए जितेंद्र से जब उसके परिवार का नाम पता पूंछा तो वह कुछ बता नहीं सका..मानो वो सबकुछ भूल चुका हो केवल मामा का नाम परिवार का नाम उसे याद था..उस व्यक्ति ने जितेंद्र को एक फैक्ट्री में काम पर लगवा दिया और रोज घर का पता याद करने के लिए बोलते रहे लेकिन सबकुछ मिट चुका था..
धीरे-धीरे समय गुजरता रहा..गांव में रह रहे उसके पिता सुंदरलाल दिवाकर बेटे का सदमा बर्दाश्त न सके और कुछ सालों बाद उनकी मौत हो गई.. जितेंद्र की मां अब वृद्ध हो चुकी थीं..किशोर भाई-बहन युवा हो चुके थे..मां सहोदरा ने दोनों की शादी भी कर दी..
सर में लगी चोट से हुआ चमत्कार..घर परिवार आया याद
दिन महीनों का समय गुजरते अब 19 साल बीत चुके थे कि ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था. अचानक दिल्ली की फैक्ट्री में काम करते हुए जितेंद्र के सर पर चोट लग गई..चोट लगते ही करन-अर्जुन की तरह उसके आंखों के सामने गांव घर परिवार का दृश्य उभरने लगा..
तभी अचानक वो बेहोश हो गया. कुछ देर बाद जब उसको होश आया तो फैक्ट्री मैनेजर को पूरी बात बताई..उसकी बात सुनकर मैनेजर को लगा शायद इसकी दिमागी हालत ठीक नहीं है..डॉक्टर को दिखाने के बाद भी घर जाने की जिद करने लगा..बताया जा रहा है कि जितेंद्र की जिद की वजह से शनिवार की देर शाम उसे कानपुर की ट्रेन में बैठा दिया गया.
जब गांव का रास्ता भूल गया जितेंद्र..घंटों बाजार में बैठा रहा..
दिल्ली से कानपुर पहुंचा जितेंद्र अपनी धुंधली यादों के सहारे मांझेपुर उमरिया बाजार पहुंचा..बचपन की यादें ताज़ा हो रही थीं कभी अपने पिता और दोस्तों के साथ बाजार आया करता था. सुबह के सात बज चुके थे..जितेंद्र ने दिमाग में काफी जोर डाला लेकिन उसे अपने गांव का रास्ता ध्यान नहीं आ रहा था..
बाजार में बैठे-बैठे शाम के पांच बज गए तभी अचानक उसे अपने बचपन का दोस्त दिखा..उसे देखते ही वो पहचान गया..पास जाकर जब बात की तो सारी याद ताजा हो गई लेकिन उसे अभी भी अपना गांव याद न रहा..दोस्त से गांव जाने के लिए कहा तो वो उसे अपने साथ लेकर उसके घर पहुंच गया..
भाई ने किया इनकार फिर रोने की आवाज से इकठ्ठा हो गया गांव..
जितेंद्र जैसे ही अपने दोस्त के साथ अपने घर पहुंचा तो भाई-भाभी ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया..प्रश्नों की ऐसी बौछार हुई कि जितेंद्र को लगा ये क्या हो गया..फिर जितेंद्र ने एक-एक कर परिवार गांव के लोगों का नाम और पूरा वाक्या बताया तो बड़ा भाई मनोज फूट-फूटकर रोने लगा..19 साल बाद भाई घर आया था..
मनोज ने कहा पिता जी नहीं रहे जितेंद्र तुमने बहुत देर कर दी..फिर गले लगाकर खूब रोए..देखते ही देखते गांव वाले भी इकठ्ठा हो गए..जितेंद्र की छोटी बहन की शादी हो चुकी है वो गाजियाबाद में है..जितेंद्र की मां भी बेटी की ससुराल में है..मनोज ने मां-बहन से जैसे ही जितेंद्र की मां कराई मानो सभी को जीवन मिल गया हो फोन पर घंटों बात करते हुए सभी खूब रोए..ये थी जितेंद्र कुमार की कहानी