
Ayodhya News: कौन हैं आचार्य सत्येंद्र दास जिनके निधन से एक युग का अंत हो गया ! जानिए बाबरी विध्वंस से भव्य राम मंदिर का सफ़र
Ayodhya Ram Mandir
अयोध्या (Ayodhya) राम मंदिर (Ram Mandir) के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का 87 वर्ष की उम्र में निधन. बाबरी विध्वंस से राम मंदिर निर्माण तक वो साक्षी रहे. 1958 में संतकबीर नगर (sant kabir nagar) से अयोध्या आए और जीवनभर रामलला की सेवा की.

Ayodhya News: अयोध्या के राम मंदिर (Ram Mandir) के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास (Acharya Satyendra Das) का बुधवार सुबह लखनऊ (Lucknow) के पीजीआई में निधन हो गया. वे 87 वर्ष के थे और ब्रेन हेमरेज के कारण बीते कुछ दिनों से अस्पताल में भर्ती थे.
बताया जा रहा है कि 3 फरवरी को अयोध्या से लखनऊ रैफर किया गया था. आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन अयोध्या आंदोलन, रामलला की सेवा और भक्ति का प्रतीक रहा. वे बाबरी विध्वंस से लेकर भव्य राम मंदिर निर्माण तक की पूरी यात्रा के साक्षी रहे और अंत तक रामलला की सेवा में समर्पित रहे.
संतकबीर नगर से अयोध्या तक – भक्ति की अनोखी यात्रा
आचार्य सत्येंद्र दास (Acharya Satyendra Das Biography) का जन्म संतकबीर नगर (Sant Kabir Nagar) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. बाल्यकाल से ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे और उनके मन में साधु बनने की तीव्र इच्छा थी. 1958 में, मात्र 13 वर्ष की उम्र में, उन्होंने घर त्याग दिया और अयोध्या आ गए. यहां वे प्रसिद्ध संत अभिराम दास के शिष्य बने.
अभिराम दास वही संत थे, जो 1949 में रामलला की मूर्ति स्थापित करने वाले बैरागियों में से एक थे. सत्येंद्र दास को उनकी विचारधारा ने गहराई से प्रभावित किया और उन्होंने अपना पूरा जीवन रामलला की सेवा में समर्पित कर दिया.
सत्येंद्र दास की शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
- 1975 में, संस्कृत विद्यालय से आचार्य की डिग्री प्राप्त की.
- 1976 में, अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में सहायक शिक्षक बने.
अपनी विद्वता और धार्मिक ज्ञान के कारण अयोध्या में सम्मान प्राप्त किया.
राम मंदिर आंदोलन में ऐतिहासिक रही भूमिका
1992 में जब बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, तब आचार्य सत्येंद्र दास ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे उस समय राम जन्मभूमि के पुजारी थे, और उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी रामलला की सुरक्षा थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 6 दिसंबर 1992 की घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा था कि..
"सुबह 11 बजे मंच तैयार था. नेताओं ने कहा कि रामलला को भोग लगाकर पर्दा बंद कर दें, मैंने ऐसा ही किया. तभी कारसेवकों ने नारेबाजी शुरू कर दी और बैरिकेडिंग तोड़ दी.जब विवादित ढांचा गिराया जाने लगा, तो मैंने रामलला को उठाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया"
रामलला के पुजारी से मुख्य पुजारी बनने तक का सफर
- मार्च 1992: राम जन्मभूमि के पुजारी नियुक्त हुए.
- वेतन: शुरू में ₹100 था, जो 2019 में ₹13,000 और राम मंदिर निर्माण के बाद ₹38,500 तक बढ़ा.
- 28 साल टेंट में और 4 साल अस्थायी मंदिर में सेवा दी.
- राम मंदिर निर्माण के बाद भी मुख्य पुजारी बने रहे.
भक्ति और समर्पण का जीवन
आचार्य सत्येंद्र दास ने अपना संपूर्ण जीवन रामलला की सेवा और राम मंदिर आंदोलन को समर्पित कर दिया. उनकी सेवा, निष्ठा और भक्ति को सदैव याद किया जाएगा. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने एक बार कहा था कि..
"मुझे नहीं पता कि मैं कब तक रामलला की सेवा कर पाऊंगा, लेकिन जब तक सांस है, मैं रामलला की सेवा करता रहूंगा"
उनके ये शब्द उनके अटूट संकल्प और समर्पण को दर्शाते हैं.आचार्य सत्येंद्र दास का योगदान राम मंदिर आंदोलन और अयोध्या के इतिहास में अमिट रहेगा. उनके निधन से एक युग का अंत हो गया, लेकिन उनकी भक्ति और सेवा की गाथा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी.
