Badri Narayan Tiwari Biography: अलविदा बद्री नारायण तिवारी ! हिंदी साहित्य के एक ऐसे युग का हुआ अंत, जिसकी भरपाई न हो सकेगी दोबारा, कानपुर के प्रसिद्ध शिवाला की रखी थी नींव
बद्री नारायण तिवारी जीवन परिचय
प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार (Hindi Literary Writer) और कानपुर के सबसे प्राचीन शिवाला (Shivala) को बसाने वाले और राम कथा (Ram Katha) से जनमानस को जोड़ने वाले और वरिष्ठ समाज से भी मानस संगम के संस्थापक डॉक्टर बद्री नारायण तिवारी ने 88 साल की उम्र में 8 फरवरी 2024 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
मानस संगम से लोगों को जोड़ने का किया था सफल प्रयास
संस्था मानस संगम के संस्थापक (Founder Of Manas Sangam) व प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार डॉक्टर बद्रीनारायण तिवारी (Badri Narayan Tiwari) बीते काफी समय से बीमार चल रहे थे, जैसे ही उनके निधन (Passes Away) की खबर शहर में फैली तो लोगों में शोक की लहर (Waves of Mourning) दौड़ पड़ी.
रात से ही शिवाला (Shivala) स्थित उनके निवास के बाहर सैकड़ो लोगों का जमावड़ा लग गया उनके निधन के बाद कहा जा रहा है कि एक युग का अंत हो गया है उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में राम कथा (Ram Katha) के जरिए लोगों को अध्यात्म से जोड़ने की कोशिश की है. यही नहीं उन्होंने अपने जीते जी यह भी कह दिया था कि उनके मरने के बाद उनके शव को देहदान (Posthumous Donation) कर दिया जाए.
कौन थे बद्री नारायण तिवारी?
कानपुर की शिवाला बाजार (Shivala Market) महिलाओं से सम्बंधित खरीददारी के लिए प्रसिद्ध है, चूड़ियों, डिजाइनर लहंगों व कपड़ों व अन्य साज-सज्जा के सामान बड़े आराम से यहां मिल जाते हैं. इस बाजार की नींव रखने वाले हिंदी साहित्यकार बद्री नारायण तिवारी (Badri Narayan Tiwari) थे. राजनीतिक दृष्टि से वे कांग्रेसी थे. हालांकि दो दिन पहले ही इस प्रसिद्ध हस्ती ने 88 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. वे भगवान राम व तुलसी के उपासक थे. बद्री नारायण तिवारी विद्यावाचसप्पति (मानद उपाधि) से सम्मानित हैं उनके तीन पुत्र और दो बेटिया हैं.
तुलसी उपवन की रखी नींव
शिवाला (Shiwala) के संस्थापक बद्री नारायण तिवारी ने जिला प्रशासन के सहयोग से मोतीझील में 25 दिसंबर 1981 को तुलसी उपवन की नींव रखी थी जिसे अयोध्या की थीम (Theme Of Ayodhya) पर बनाया गया था यही नहीं इनके द्वारा आज नाना राव पार्क की भी स्थापना करवाई गई थी जिसमें देश के प्रति अपनी जान निसार करने वाले 51 क्रांतिकारियों की प्रतिमाएं (Statue) भी लगाई गई थी उनके निधन के बाद कानपुर ही नहीं देशभर में शोक की लहर दौड़ (Wave Of Mourning) पड़ी है. मानस संगम की शुरुआत 1950 के करीब की गई थी. जबकि कथा की शुरुआत 1966 में हुई. यही नहीं बड़े राजनेता इनके मानस संगम कार्यक्रम में बराबर शिरकत करते रहे.
देहदान की करी थी घोषणा
साल 2012 में हुए मानक संगम के वार्षिक समारोह में उन्होंने देहदान की घोषणा भी कर दी थी उन्होंने कहा था कि उनकी मृत्यु के बाद उनका शरीर छात्रों की पढ़ाई और अध्ययन के लिए मेडिकल कॉलेज को समर्पित कर दिया जाए जिसे सुनकर यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने जीते जी कानपुर को तो बहुत कुछ दिया लेकिन जब आज वह इस दुनिया में नहीं है तो उनके न होने के बावजूद वह सैकड़ो हजारों छात्रों के भविष्य को उज्वल बनाएंगे.
हिंदी साहित्य में मनवाया लोहा मिले कई सम्मान
पंडित बद्री नारायण तिवारी ने राष्ट्रीय एकता और सामाजिक साहित्यिक विषयों पर 80 से ज्यादा पुस्तक लिखी थी. साहित्य और सामाजिक सेवाओं के लिए उन्हें सम्मान पूर्वक मॉरीशस सरकार ने पुर्तगु में महर्षि अगस्त्य 2003 सम्मान भी दिया गया था इसके साथ ही उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का हिंदी सेवा सम्मान भी उन्हें मिला.
यही नहीं अंतर्राष्ट्रीय भारतीय भाषा व संस्कृति फाऊंडेशन सागर मध्य प्रदेश में उन्हें सारस्वत सम्मान दिया था. इतनी उपलब्धियों व हिंदी साहित्य में लोहा मनवाने वाली इस महान हस्ती ने 8 फरवरी 2024 को दुनिया से अलविदा कह दिया. उनका इस तरह से चले जाना हिंदी साहित्य के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है जिसकी भरपाई करना काफी मुश्किल है.