Brahmacharinni Devi: नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी (तपश्चारिणी) की करें उपासना ! तप, संयम और दीर्घायु में होती है वृद्धि
Navratri 2nd Day: शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी मां का दिन होता है, इनके पूजन का विशेष महत्व है, माँ का यह स्वरूप भक्तों को अनंत फल देने वाला है. माता की उपासना से तप, त्याग, ब्रह्मचर्य और संयम की वृद्धि होती है. भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने हज़ारो वर्ष कठोर तपस्या की थी, इन्हें तपश्चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली देवी और ब्रह्मचारिणी भी कहा जाता है.
हाईलाइट्स
- शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की करें आराधना
- माता को तपश्चारिणी और ब्रह्नचारिणी भी कहा जाता है, तप,संयम और ब्रह्मचर्य में होती है वृद्धि
- गुड़हल और कमल के पुष्प मां को प्रिय, शिव जी को पति रूप में पाने के लिए मां ने की थी हज़ारो वर्ष कठोर त
Worshiping Mata Brahmacharini on the second day of Navratri : माँ दुर्गा के नवरात्रि के नौ दिन के पूजन का विशेष फल मिलता है, हर दिन मां के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. ब्रह्माचारिणी माता जिन्होंने कठोर तपस्या की थी, ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप का आचरण करने वाली, जानिए किस तरह से माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करें, और इसके पीछे क्या कथा प्रचलित है.
माँ ब्रह्नचारिणी की करें उपासना
शारदीय नवरात्रि में माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है, इन स्वरूपों में एक स्वरूप ब्रह्मचारिणी माता का भी है, नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्नचारिणी की पूजा का महत्व है. देवी माता की विधि-विधान से उपासना करने से तप,धैर्य और संयम में बढोत्तरी होती है. माँ ब्रह्मचारिणी को तप की देवी कहा गया है, मां की उपासना से समस्त संसार के सुख प्राप्त होते हैं और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है.
दाएं हाथ में जप की माला और बाएं में कमंडल
देवी माता का स्वरूप अद्भुत है, श्वेत वस्त्र धारण किए माता, दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल है, तभी इन माता को तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी माता कहा गया है.इनका वाहन पर्वत की चोटी को बताया गया है, इनके पूजन और आराधना से सम्पूर्ण विषयों का ज्ञान और मंत्र सिद्धि प्राप्त होती है. मां के इस स्वरूप को गुड़हल और कमल पुष्प प्रिय है,इसके साथ ही शक्कर या खीर के भोग मां को लगाया जाता है,इससे माँ प्रसन्न होती है.
एक कथा है प्रचलित
ब्रह्माचारिणी देवी ने राजा हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था, इन्हें माता पार्वती भी कहते हैं, ऐसा बताया जाता है कि नारदजी के उपदेश से माता ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन हज़ारो वर्ष तपस्या की थी, इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी या फिर ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया, माता की घोर कठिन तपस्या देख देवता और ऋषि भी अचंभित हो उठे, करीब 1 हजार वर्ष तक माता ने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. अंत में भोलेनाथ माता की तपस्या से प्रसन्न हुए.
इस तरह करें पूजन
माँ दुर्गा के 9 स्वरूप में से दूसरा स्वरूप मां ब्रह्माचारिणी का है, दूसरे दिन माँ तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. सुबह जल्द उठकर, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें. पंचामृत से स्नान कराएं. इसके बाद मां को अक्षत, चंदन और रोली चढ़ाएं. कमल और गुड़हल के पुष्प अर्पित करें. उसके बाद कलश देवता और नवग्रह की विधि विधान से पूजा करें. फिर दीपक से मां की आरती उतारें और उनका ध्यान करें. मां ब्रह्माचारिणी को पीले रंग की मिठाई का भोग जरूर लगाएं.
इन मंत्रों का जाप करें
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।