Premanand Ji Maharaj Motivational: प्रेमानन्द महाराज ने बताया इन गलतियों को जीवन में न करें ! पुण्य हो जाएंगे नष्ट
मथुरा-वृन्दावन वाले श्री हित प्रेमानन्द गोविंद शरण जी महाराज (Premanand Maharaj) को आज सभी जानते हैं. उनके सत्संग और प्रवचन (Satsang) लोगों में सकारात्मक विचार (Positive Thoughts) और नई ऊर्जा का संचार करते हैं. आये हुए भटके लोगों का वह सहजता से मार्गदर्शन करते हैं. प्रेमानन्द जी ने सत्संग के दौरान यह बताया कि जिंदगी में कुछ गलतियों से बचना चाहिए. यदि नहीं चेते तो पुण्य नष्ट हो जाते हैं.
प्रेमानन्द महाराज ने बताई कुछ जरूरी बातें
प्रेमानन्द जी महाराज (Premanand Maharaj) लोगों के प्रश्नों के उत्तर बड़े ही सहजता से देकर उनका समाधान (Solution) करते हैं. प्रेमानन्द जी पर भक्तों में गहरा विश्वास है. दुनिया भर के सेलीब्रिटी, राजनेता उनके आश्रम पहुंचते हैं. लोग उन्हें फ़ॉलो करते हैं. महाराज जी की दोनों किडनियां भी खराब है. राधा-राधा नाम ही उनके जीवन का उद्देश्य है. आये हुए सभी लोगों को भी राधा-राधा जप करने की सलाह देते हैं. महाराज जी ने कुछ ऐसे दोष बताएं हैं जिनसे बचने की जरूरत है. यह कुछ दोष जीवन मे ऐसे है जिससे कभी शांति, सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती और दुर्गति निश्चित है. इससे यदि बचना है तो आपको सही मार्ग पर चलना होगा.
उपासक को इन दोषों को अंदर नहीं टिकने देना चाहिए
उपासक को इन दोषों को कभी अंदर टिकने नहीं देना चाहिए. अपनी बड़ाई या प्रशंसा खुद अपने मुख से नहीं करना चाहिए, नहीं तो पुण्य नष्ट हो जाएंगे. उसके सुकरात नष्ट हो जाते है. दूसरा लोलुपता यानी लालच यह वृत्ति न हो. जैसे धन आयेगा-धन आएगा, आएगा जरूर हेलोजन की तरह लेकिन फिर फ्यूज हो जाएगा, यानी जीवन मे अंधकार आएगा. जब लोलुपता होगी तो खुद अपने परिवार की स्थिति को देखकर जलोगे. इसलिए सावधान रहिए धर्म से चलिये उसी से जो प्राप्त होगा उससे ही भरण पोषण करेंगे. बच्चे स्वस्थ होंगे, बुद्धिमान होंगे. इसलिए लोलुपता का विचार भी न आये इस बात का ध्यान दें.
अपमान को सहन करने की जरूरत,पराई स्त्री पर गलत भाव रखना, दुर्गति निश्चित
तीसरा यदि आपका अपमान होता है तो उसे सहन करें उससे आपके पाप नष्ट होंगे. जिसने तनिक भी हुए अपमान को लेकर क्रोध जताया तो उसका पतन निश्चित है. इससे ह्रदय में दुख और जलेगा, आर्थिक समस्या बढ़ेगी और परिवार की स्थिति बिगड़ेगी. आपको दंड देने की जरूरत नहीं उस्का कर्म ही उसे दंड दे देगा. चौथा निरंतर क्रोध और द्वेष का चिंतन, उपासक को चिंतन नहीं करना चाहिए. बार बार क्रोधित होना यह आपके जीवन के लिए हानिकारक है, इसलिए शांत मन से रहें.
सम्भोग में ही मन और चिन्तन करना पराई स्त्री के साथ संभोग करने की भावना रखना, रात दिन बस गंदी बातों का चिंतन करना, अन्य महिलाओं को काम दृष्टि से देखना, पुण्य का नाश तो होगा ही दुर्गति भी निश्चित है. इस पर भी नियम बनाये है जिसका विवाह हो गया है, मास में कुछ दिन होते हैं. संयम बरतें, विषय चिंतन जहर है इससे बचने की जरूरत है. आपने विवाह किया है तो कुछ धर्म शासन भी लागू है, जैसे कुछ पवित्र तिथियो पर यह वर्जित है. यदि पराई स्त्री के लिए गलत विचार भी लाया तो दुर्गति निश्चित है. चिंतन को सम्भालिये.
खुद को श्रेष्ठ दूसरों को नीचा न दिखाएं, किसी को दान देने के बाद सोचें नहीं
कोई पशु, पक्षी या इंसान आपकी शरण में आ जाये निश्चित उसकी सहायता करनी चाहिए. बहुत ज्यादा उत्साह में कोई गलत कदम न उठाना यदि ऐसा भाव आया तो पतन शुरू हो जाएगा. एक बात और खुद को श्रेष्ठ और दूसरों को नीचा दिखाने वाला शख्स कभी सुखी नहीं रह सकता, विषमता पर विजय प्राप्त करने वाला वही भगवत प्राप्ति का अधिकारी है.
एक और बात महाराज जी ने बताई पहले मन में दान देने की बात आये और फिर मुकर जाए या फिर दान देकर बाद में सोचना कि क्यों दे दिया इससे पुण्य नष्ट हो जाते है. दान देना है तो कहकर कभी मुकरे नहीं. अपनी आमदनी घर जी जरूरतों पर लगाएं, जरूरतमंद की मदद जरूर करें, ऐसा धन व्यर्थ है जो किसी की मदद न कर सके. जो लोग बड़े-बुजुर्गों व स्त्री व बच्चों को नुकसान पहुंचाते है या उनसे गलत बोलते हैं उसका पतन निश्चित है. इसलिए सबका सम्मान करें.