Karwa Chauth Katha Likhi Hui 2024: करवा चौथ की लिखी हुई व्रत कथा हिंदी में ! जानिए कौन थी करवा
Karwa Chauth Vrat Katha
करवा चौथ (Karwa Chauth Vrat Katha) की कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें एक साहूकार के सात भाइयों में एक बहन की कथा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री कैसे यमराज से भिड़ गई तभी से इस व्रत को करवा चौथ के नाम से पूजते हैं.
Karwa Chauth Katha Likhi Hui: एक समय की बात है, सात भाइयों की एक बहन का विवाह एक राजा से हुआ. विवाहोपरांत जब पहला करवा चौथ आया, तो रानी अपने मायके आ गयी. रीति-रिवाज के अनुसार उसने करवा चौथ का व्रत (Karwa Chauth Vrat) तो रखा किन्तु अधिक समय तक वह भूख-प्यास सहन नहीं कर पा रही थी और चाँद दिखने की प्रतीक्षा में बैठी रही.
उसका यह हाल उन सातों भाइयों से ना देखा गया, अतः उन्होंने बहन की पीड़ा कम करने हेतु एक पीपल के पेड़ के पीछे एक दर्पण से नकली चाँद की छाया दिखा दी. बहन को लगा कि असली चाँद दिखाई दे रहा है और उसने अपना व्रत समाप्त कर लिया. इधर रानी ने व्रत समाप्त किया उधर उसके पति का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. रानी को जब यह जानकारी हुई तो वह तुरंत अपने ससुराल को रवाना हो गई.
रास्ते में रानी की भेंट शिव-पार्वती से हुईं. माँ पार्वती ने उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है और इसका कारण वह खुद है. रानी को पहले तो कुछ भी समझ ना आया किन्तु जब उसे पूरी बात का पता चला तो उसने माँ पार्वती से अपने भाइयों की भूल के लिए क्षमा याचना की. यह देख माँ पार्वती ने रानी से कहा कि उसका पति पुनः जीवित हो सकता है यदि वह सम्पूर्ण विधि-विधान से पुनः करवा चौथ का व्रत करें. तत्पश्चात देवी माँ ने रानी को व्रत की पूरी विधि बताई..माँ की बताई विधि का पालन कर रानी ने करवा चौथ का व्रत संपन्न किया और अपने पति के प्राण बचा लिए.
वैसे करवा चौथ (Karwa Chauth Vrat Katha) की अन्य कई कहानियां भी प्रचलित हैं किन्तु इस कथा का जिक्र शास्त्रों में होने के कारण इसका आज भी महत्त्व बना हुआ है. द्रोपदी द्वारा शुरू किए गए करवा चौथ व्रत की आज भी वही मान्यता है. द्रौपदी ने अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखा था और निर्जल रहीं थीं. यह माना जाता है कि पांडवों की विजय में द्रौपदी के इस व्रत का भी महत्व था.
करवा चौथ का नाम करवा कैसे पड़ा (Kawra Chauth Vrat Katha)
करवा चौथ की कई कथाएं प्रचलित हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस व्रत का नाम करवा चौथ कैसे पड़ा..तो पढ़िए ये प्राचीन कथा..बहुत समय पहले एक करवा नाम की एक स्त्री थी. वह एक पतिव्रता स्त्री थी और उसका पति एक वृद्ध था. उसका घर नदी किनारे था. एक दिन करवा का पति नदी में स्नान करने गया. नहाते समय ही मगर ने उसको पकड़ लिया. पति जोर-जोर से अपनी पत्नी का नाम करवा-करवा पुकारने लगा. पति की आवाज़ सुनकर करवा नदी पर आई उसने देखा कि मगर ने उसके पति को पकड़ लिया है उसने कच्चे सूत से मगर को बांध दिया. लेकिन पति को मगर से छुड़ा नहीं पाई और यमराज के पास पहुंच गई.
चित्रगुप्त अपना बही खाता देख रहे थे. करवा (Karwa) ने सात सींक लेकर उसके खातों को झड़ना शुरू कर दिया. सभी बही खाते आकाश में उड़ने लगे ये देख चित्रगुप्त और यमराज घबरा गए. यमराज बोले देवी तू कौन है? और क्या चाहती है? करवा ने यमराज से कहा हे प्रभु ! मेरा नाम करवा है मैं एक पतिव्रता स्त्री हूं..मेरे पति को नदी में स्नान करते समय मगर ने पकड़ लिया है. कृपा करके आप उस मगर को मार कर मेरे पति के प्राण बचा लीजिए. यमराज बोले हे देवी मगर का जीवन अभी शेष है अभी मैं उसको अपने लोक में नहीं ला सकता हूं..यमराज की बात सुनकर करवा क्रोधित हो गई उसने यमराज से कहा-यदि आप मगर को मारकर मेरे पति की रक्षा नहीं करोगे तो मैं श्राप देकर आपको नष्ट कर दूंगी.
करवा की बात सुनकर यमराज भी भयभीत हो गए और उन्होंने मगर को मारकर करवा के पति की रक्षा की साथ ही उसे दीर्घायु का वरदान दिया..जाते समय यमराज ने करवा को सुख समृद्धि का वरदान देते हुए कहा कि जो स्त्री इस दिन व्रत करेगी उसके सौभाग्य की रक्षा मैं करूंगा..कहा जाता है कि जिस दिन यमराज ने करवा के पति की रक्षा की वह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथ तिथि थी..इसलिए इसे करवा चौथ के नाम से मनाया जाता है.
करवा चौथ की व्रत कथाएं मान्यताओं पर आधारित हैं इसके लिए युगान्तर प्रवाह जिम्मेदार नहीं है