Harisiddhi Mata Shaktipith: उज्जैन नगरी में सिद्ध शक्तिपीठ हरिसिद्घि माता के करें दर्शन, यहाँ माता के हाथ की गिरी थी कोहनी
Harisiddhi Mata Shaktipith: उज्जैन नगरी महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग की वजह से प्रसिद्ध है, यहां 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ यहां पर भी है. जिसे हरसिद्धि माता मन्दिर शक्तिपीठ कहते हैं. देवी सती के जब शरीर के अंग जगह-जगह गिरे तो वह शक्तिपीठ बन गया. यहां माता के हाथ की कोहनी गिरी थी. राजा विक्रमादित्य भी इन्ही देवी के उपासक थे. नवरात्रि के दिनों में माँ के दर्शन करना फलदायी है. यहां माता हरि श्रीयंत्र पर विराजमान हैं. माता के सच्चे मन से पूजन से हर प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है.
हाईलाइट्स
- माता हरिसिद्घि मंदिर शक्तिपीठ उज्जैन नगरी में दर्शन का विशेष महत्व
- यहां माता सती के हाथ की कोहनी गिरी थी, 9 दिन माँ शयन नहीं करती
- राजा विक्रमादित्य हरिसिद्घि माता के थे उपासक, सिद्धियां होती हैं प्राप्त
Siddha Shaktipeeth Harsiddhi Mata Temple is in Ujjain : 51 शक्तिपीठ में से एक शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के उज्जैन नगरी में भी है इस शक्तिपीठ को हरिसिद्धि माता मंदिर के नाम से जाना जाता है. आम दिनों में यहां पर भक्तों की भीड़ उमड़ती ही है, लेकिन नवरात्रि के दिनों में यहां पर विशेष प्रकार से माँ का पूजन किया जाता है और भक्तों का सैलाब उमड़ता है, यहां पर सिद्धियां प्राप्त करने के लिए नवरात्र में पूजन करने के लिए गुप्त रूप से साधक आते हैं. चलिए आपको बताते हैं हरी सिद्धि माता मंदिर शक्तिपीठ के पौराणिक महत्व के बारे में.
सिद्ध शक्तिपीठ है हरिसिद्घि
नवरात्र के पावन 9 दिनों का पर्व चल रहा है ऐसे में हम लगातार माता के शक्तिपीठों के दर्शन के साथ ही इनका पौराणिक महत्व बता रहे हैं, मध्यप्रदेश के उज्जैन में हरसिद्धि माता का मंदिर एक सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है, जब माता सती के मृत देह के अंग इधर उधर गिरे थे उनमें से सती के दाहिने हाथ की कोहनी उज्जैन में गिरी थी, और यहां शक्तिपीठ बन गया. अब इसे हरिसिद्घि माता मन्दिर शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है.
दो स्तम्भों पर दीपक जलाने का विशेष महत्व
वैसे तो यहां भक्तों की भीड़ रहती ही है, नवरात्रि पर भक्तों का हुजूम उमड़ता है. हरसिद्धि माता मंदिर में दर्शन करने से भक्तों की समस्त मनोकामना पूर्ण होती हैं.यहां माता को प्रसन्न करने के लिए पाठ व जप किये जाते हैं, माता 9 दिनों तक शयन नहीं करती, इसलिए मन्दिर में शयन आरती नहीं की जाती. यहां 51 फीट ऊंचे 1100 दीपों के दो दीप स्तम्भों पर दीपक जलाने से सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है.
राजा विक्रमादित्य से जुड़ा है महत्व
उज्जैन के राजा विक्रमादित्य भी हरी सिद्धि माता के उपासक थे, हर 12 साल में एक बार वे अपना शीश काट कर माता के चरणों में चढ़ाते थे, लेकिन माता रानी की ऐसी विशेष कृपा बनती है कि विक्रमादित्य का शीश अपने आप धड़ से जुड़ जाता था.
ऐसा राजा ने 11 दफा किया, मान्यता है कि जब बारहवीं बार उन्होंने अपना सिर चढ़ाया, पर अबकी बार सिर वापस नहीं आया और उनका जीवन समाप्त हो गया था. वहीं मंदिर परिसर के एक कोने में 11 सिंदूर लगे मुण्ड राजा विक्रमादित्य के बताए जाते हैं. राजा विक्रमादित्य हमेशा माता को प्रसन्न करने के लिए पूजन करते थे, और माता भी उनपर कृपा करते हुए सबकी रक्षा करती है.