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हरतालिका तीज व्रत कथा PDF: हरतालिका तीज की पौराणिक व्रत कथा जिसे शिव ने पार्वती को सुनाया था.जाने हरतालिका पूजा क्या है?

Hartalika Teej Vrat Katha In Hindi

हरतालिका तीज (Hartalika Teej Vrat Katha) भाद्र पद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है.इस दिन कुंवारी कन्याएं अपने लिए सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए और सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए व्रत करती हैं (Hartalika Teej Vrat Katha In Hindi Hartalika Vrat Katha Shubh Muhurt Pujan Vidhi Date Time In Hindi)

हरतालिका तीज व्रत कथा PDF: हरतालिका तीज की पौराणिक व्रत कथा जिसे शिव ने पार्वती को सुनाया था.जाने हरतालिका पूजा क्या है?
Hartalika Teej Vrat Katha In Hindi

हाईलाइट्स

  • हरतालिका तीज की पौराणिक कथा जिसे शिव ने पार्वती को सुनाया था
  • महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए और कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर प्राप्ति के व्रत करती हैं
  • भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका व्रत किया जाता है

Hartalika Teej Vrat Katha In Hindi: हरतालिका तीज व्रत भाद्र पद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है. हरतालिका (Hartalika Vrat Katha) व्रत करने वाले प्राणी को सूर्योदय से पहले उठाकर भगवान शंकर जी का स्मरण करे फिर शौचादि नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान करने के बाद स्वच्छ पकड़े पहन कर शिवालय में जाय या फिर इस स्थान पर जाए जहां कथा सुननी हो. वहां भगवान शिव और माता पार्वती का एक मंडप तैयार करें और केले और पुष्प मालाओं से सुसज्जित एक बंदनवार बनाए. शुभ मुहूर्त में विद्वान पंडित आचार्य से विधि विधान से पूजन करवाकर कथा को सुनें

हरतालिका तीज व्रत कथा (Hartalika Teej Vrat Katha In Hindi)

अथ हरतालिका तीज व्रत कथा सुनिए जो इस तरह से है – जिसके दिव्य मेष राशि पर मंदार के पुष्प की माला शोभा देती है। भगवान चंद्रशेखर के कंठ में मुंडो की मालाएं पड़ी हुई है। जो माता पार्वती दिव्य वस्त्रों से भगवान शंकर दिगंबर वेश धारण किए हैं, उन दोनों भगवती तथा शंकर को नमस्कार करता हूं। कैलाश पर्वत के शिखर पर माता पार्वती ने महादेव से पूछा। हे महादेव! हमसे आप गुप्त से गुप्त वार्ता कहिए – जो सबके लिए सब धर्मों से सरल हो अथवा महान फल देने वाली हो. हे नाथ अब आप हमसे भलीभांति प्रसन्न होकर आप मेरे सम्मुख प्रकट कीजिए (Hartalika Teej Vrat Katha)

हे नाथ आप यदि मन्य और अंत रहित है, आपकी माया का कोई पार नहीं है अब हम आप को किस प्रकार से प्राप्त करें और कौन-कौन से दान पुण्य फल से आप हमें वर के रूप में मिले। तब महादेव जी बोले हे देवी सुनो मैं उस व्रत को कहता हूं जो परम गुप्त है मेरा सर्वस्व है। जैसे तारा गणों में चंद्रमा, ग्रहों में सूर्य, वर्णों में ब्राह्मण और देवताओं में गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में शाम, इंद्रियों में मन श्रेष्ठ है। वैसे पुराण वेद में इसका वर्णन आया है जिसके प्रभाव से तुमको मेरा यह आसन प्राप्त हुआ है (Hartalika Teej Vrat Katha)

हे प्रिय! यही मैं तुमसे वर्णन करता हूं. अब सुनो-  भादो मास के शुक्ल पक्ष को हस्त नक्षत्र तृतीय तीज के दिन को इस व्रत का अनुष्ठान करने से सब पापों का नाश हो जाता है। हे देवी सुनो तुमने पहले हिमालय पर्वत पर इस व्रत को किया था जो मैं सुनाता हूं. पार्वती जी – बोलिए!  हे प्रभु इस व्रत को मैंने किस लिए किया था, वह सुनने की इच्छा है तो कहिए (Hartalika Teej Vrat Katha)

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शंकर जी बोले आर्यव्रत में हिमांचल नामक एक पर्वत है जहां अनेक प्रकार की भूमि अनेक प्रकार के वृक्षों से सुशोभित है। जिन पर अनेक प्रकार के पक्षी गण रहते हैं। अनेक प्रकार के मृग आदि जहां विचरण करते हैं। जहां देवता गंधर्व सहित किन्नर आदि सिद्ध जन रहते हैं। गंधर्व गण प्रसन्नता पूर्वक गान करते हैं। पहाड़ों के शिखर कंचन मणि वैधर्य आदि के सुशोभित रहते हैं (Hartalika Teej Vrat Katha)

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वह गिरिराज आकाश को अपना मित्र जानकर अपने शिखर रुपी हाथों से छूता रहता है. जो सदैव बर्फ से ढका हुआ गंगा जी की कल कल ध्वनि से शब्दाएमान रखते हैं. हे गिरजे तुमने बाल्यकाल में इसी स्थान पर तक किया था। बारह साल नीचे की ओर मुख करके धूम्रपान किया तब, फिर चौसठ वर्ष तुमने बेल के पत्ते भोजन करके ही तप किया. माघ के महीने में जल में रहकर तथा बैसाख में अग्नि में प्रवेश करके तप किया. श्रावण के महीने में बाहर खुले में निवास कर अन्न जल त्याग तब करती रही. तुम्हारे कष्ट को देख तुम्हारे पिता को चिंता हुई वह चिंतातुर होकर सोचने लगे कि मैं इस कन्या को किसके साथ वरुण करूं. (Hartalika Teej Vrat Katha)

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तब इस अवसर पर देव योग से ब्रह्मा जी के पुत्र देवर्षि नारद जी वहां आए। देवर्षि नारद जी ने तुमको (शैलपुत्री) देखा तो तुम्हारे पिता हिमांचल ने देवर्षि को अध्य पदम आसन देकर सम्मान सहित बिठाया, और कहा हे मुनिवर! आज आपने यहां तक आने का कैसे कष्ट किया. आज मेरा अहोभाग्य है कि आपका शुभ आगमन हमारे यहां हुआ. कहिए क्या आज्ञा है, तब नारदजी बोले हे गिरिराज! में विष्णु का भेजा हुआ आया हूं. आप मेरी बात सुनिए और अपनी लड़की को उत्तम वरदान करिए. (Hartalika Teej Vrat Katha)

 ब्रह्मा, देवेंद्र, शिव आदि देवताओं में विष्णु के समान कोई नहीं है, इसलिए आप मेरे मत से अपनी पुत्री का दान विष्णु भगवान को दें. हिमाचल बोले यदि भगवान वासुदेव स्वयं ही मेरी पुत्री को ग्रहण करना चाहते हैं तो फिर इस कार्य के लिए ही आपका आगमन हुआ है, तो यह मेरे लिए गौरव की बात है. मैं अवश्य उनको ही अपनी पुत्री का दान दूंगा. हिमाचल की यह कथा सुनते ही देवर्षि नारद जी आकाश में अंतर्ध्यान हो गए और शंख, चक्र, गदा, पदम एवं पितांबरधारी विष्णु के पास जा पहुंचे. नारद जी ने हाथ जोड़कर विष्णु से कहा हे प्रभु! आपका विवाह कार्य निश्चित हो गया. (Hartalika Teej Vrat Katha)

यहां हिमाचल ने प्रसन्नता पूर्वक कहा है पुत्री ! मैंने तुमको गरुड़ध्वज भगवान विष्णु को अर्पण कर दिया है. पिता के वाक्यों को सुनते ही पार्वती जी अपनी सहेली के घर गई और पृथ्वी पर गिर कर अत्यंत दुखित होकर विलाप करने लगी।  उनको विलाप करते हुए देखकर सखी बोली देवी! तुम किस कारण से दुख पाती हो?  मुझे बताओ मैं अवश्य तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूंगी.

तब पार्वती बोली है सखी सुन मेरी जो मन की अभिलाषा है, अब वह मैं सुनाती हूं – मैं महादेव जी को वरना चाहती हूं, इसमें संदेह नहीं मेरे इस कार्य को पिताजी ने बिगाड़ना चाहा है. इसलिए मैं अपने शरीर का त्याग करूंगी। तब पार्वती के इन वचनों को सुनकर सखी ने कहा हे देवी जिस वन को तुम्हारे पिताजी ने ना देखा हो तुम वहां चली जाओ। तब हे देवी पार्वती तुम उस अपनी सखी का यह वचन सुनकर ऐसे वन को चली गई.

पिता हिमाचल तुमको घर पर ढूंढने लगे और सोचा कि मेरी पुत्री को या तो कोई देव – दानव अथवा किन्नर हरण कर ले गया है। मैंने नारद जी को यह वचन दिया था कि मैं अपनी पुत्री को गरुड़ध्वज भगवान के साथ वरण करूंगा। हाय अब यह किस तरह पूरा होगा। ऐसा सोच कर बहुत चिंतातुर हो मूर्छित हो गए, तब सब लोग हाहाकार करते हुए दौड़े आए और मूर्छा नष्ट होने पर गिरिराज से बोले हमें अपनी मूर्छा का कारण बताओ। हिमाचल बोले मेरे दुख का कारण यह है कि मेरी रतन रूपी कन्या का कोई हरण कर ले गया है या सर्प डस गया अथवा किसी सिंह या व्याघ्र ने मार डाला है। ना जाने वह कहां चली गई या उसे किसी राक्षस ने मार डाला है। (Hartalika Teej Vrat Katha)

इस प्रकार कहकर गिरिराज दुखित होकर इस तरह कांपने लगे. जैसे तीव्र वायु चलने पर कोई वृक्ष कापता है. तत्पश्चात है पार्वती जी तुमको गिरिराज सखियों सहित घने जंगल में ढूंढने निकले. सिंह, व्याघ्र आदि हिंसक जंतुओं के कारण वन महा भयानक प्रतीत होता था। तुम भी सखी के साथ जंगल में घूमती हुई भयानक जंगल में एक नदी के तट पर एक गुफा में पहुंची.

उस गुफा में तुम अपनी सखी के साथ प्रवेश कर गई। जहां तुम अन्न जान का त्याग करके बालू का लिंग बनाकर मेरी आराधना करती रही। उसी स्थान पर भाद्र मास की हस्त नक्षत्र युक्त तृतीया के दिन तुमने मेरा विधि विधान से पूजन किया। तब रात्रि को मेरा आसन डोलने लगा मैं उस स्थान पर आ गया जहां तुम और तुम्हारी सखी दोनों थी। मैंने आकर तुमसे कहा मैं तुमसे प्रसन्न हूं तुम मुझसे वरदान मांगो. तब तुमने कहा है देव यदि आप प्रसन्न है, तो आप महादेव जो मेरे पति हो। मैं तथास्तु ऐसा ही होगा कहकर कैलाश पर्वत को चला गया. (Hartalika Teej Vrat Katha)

 तुमने प्रभात होते ही उस बालू की प्रतिमा को नदी में विसर्जित कर दिया है। शुभे तुमने वहां अपनी सखी सहित व्रत का पारायण किया। इतने में हिमांचल भी तुम्हें ढूंढते हुए उसी वन में आ गए वह चारों और तुम्हें ना देख कर मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़े। उस समय नदी के तट पर दो कन्याओं को देखा, तो वह तुम्हारे पास आ गए। तुम्हें हृदय से लगा कर रोने लगे और बोले तुम इस सिंह व्याघ्र युक्त घने जंगल में क्यों चली आई।

पार्वती जी बोली हे पिता! सुनिए मैंने पहले ही अपना शरीर शंकर जी को समर्पित कर दिया था. किंतु आपने इसके विपरीत कार्य किया इसलिए मैं वन में चली आई। ऐसा सुनकर हिमराज ने फिर तुमसे कहा कि मैं तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध यह कार्य नहीं करूंगा। तब यह तुमको घर पर लेकर आए और तुम्हारा विवाह हमारे साथ कर दिया। हे प्रिय! उसी व्रत के प्रभाव से तुमको यह मेरा अर्ध आसन प्राप्त हुआ है.

इस व्रतराज को मैंने अभी तक किसी के सम्मुख वर्णन नहीं किया है।  हे देवी! अब मैं तुमको बताता हूं सो मन लगाकर सुनो। इस व्रत का नाम व्रतराज क्यों पड़ा? तुमको सखी हरण कर ले गई थी इसलिए इस व्रत का नाम हरतालिका नाम पड़ा। पार्वती जी बोली है स्वामी! आपने व्रतराज का नाम तो बताया किंतु मुझे इसकी विधि एवं फल भी बताइए इसके करने से किस फल की प्राप्ति होती है। (Hartalika Teej Vrat Katha)

तब शंकर जी बोले की स्त्री जाति के अति उत्तम व्रत की विधि सुनिए, सौभाग्य की इच्छा रखने वाली स्त्री इस व्रत को विधिपूर्वक करें उसमें केले के खंभों से मंडप बनाकर वंदनवार से सुशोभित करें, उसमें विविध रंगों से रेशमी वस्त्र की चांदनी तान देवे।  फिर चंदन आदि सुगंधित द्रव्यों से लेपन करके स्त्रियां एकत्र हो शंख, भेरखी, मृदंग बजावे। विधि पूर्वक मंगला चार करके गोरा और शंकर स्वर्ण निर्मित प्रतिमा को स्थापित करें। फिर शिव व पार्वती जी का गंध, धूप, दीप, पुष्प आदि से विधि सहित पूजन कर अनेक प्रकार के नैवेद्य मिठाई का भोग लगा दें और रात को जागरण करें। नारियल, सुपारी, जवारी, नींबू, लोंग, अनार, नारंगी आदि फलों को एकत्रित करके धूप दीप आदि मंत्रों द्वारा पूजन करें।

फिर मंत्र उच्चारण करें शिवाय से लेकर उमाय तक के मंत्रों में प्रार्थना कर. अथ प्रार्थना मंत्र अर्थ है कल्याण स्वरूप शिव है मंगल रूप महेश्वरा हे शिवे आप हमें सब कामनाओं को देने वाली देवी कल्याण रुप तुम को नमस्कार है। कल्याण स्वरूप माता पार्वती जी हम आपको नमस्कार करते हैं और श्री शंकर जी को सदैव नमस्कार करते हैं.

ब्रह्म फपणीं जगत का पालन करने वाली माता जी आपको नमस्कार है। हे सिंह वाहिनी सांसारिक भय से व्याकुल हूं मेरी रक्षा करें।  हे माहेश्वरी मेरे इस अभिलाषा से आपका पूजन किया हे पार्वती माता आप हमारे ऊपर प्रसन्न होकर मुझे सुख और सौभाग्य प्रदान कीजिए। इस प्रकार मंत्रों द्वारा उमा सहित शंकर जी का पूजन करें तथा विधि विधान सहित कथा सुन कर गौ वस्त्र तथा आभूषण ब्राह्मणों को दान करें।  इस प्रकार से पति तथा पत्नी दोनों को एकाग्र चित्त होकर पूजन करें। (Hartalika Teej Vrat Katha)

वस्त्र आभूषण आदि संकल्प द्वारा ब्राह्मण को दीक्षा दें..हे देवी! इस प्रकार व्रत करने वालों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं फिर वह सात जन्म तक राज्य सुख और सौभाग्य को भोगती है। जो स्त्री इस तृतीया के दिन फलाहार करती है व्रत को नहीं करती वह सात जन्म तक वंध्या एवं विधवा होती है। जो स्त्री इस व्रत को नहीं करती वह धन और पुत्र के शौक से अधिक दुख होती है तथा वह घोर नरक में जाकर कष्ट पाती है।

इस दिन फलाहार करने वाली सुकरी, फल खाने वाली बानरी तथा जल पीने वाली टिटिहरी शरबत पीने वाली जो दूध पीने वाली सरपंच मांस खाने वाली बागिनी दही खाने वाली बिलारी मिठाई खाने वाली चींटी सब चीज खाने वाली मक्खी का जन्म पाती है..सोने वाली असगरी पति को धोखा देने वाली मुर्गी का जन्म पाती है। (Hartalika Teej Vrat Katha)

स्त्रियों को परलोक सुधारने के लिए व्रत करना चाहिए। व्रत के दूसरे दिन व्रत का पारायण करने के पश्चात चांदी सोना तांबे या कांसे के पात्र में ब्राह्मणों को अन्न दान करना चाहिए। इस व्रत को करने वाली स्त्रियां मेरे सामान पति को पाती है। मृत्यु काल में पार्वती जैसे रूप को प्राप्त करती है। जीवन सांसारिक सुख को भोग  कर परलोक में मुक्ति पाती है।

हजारों अश्वमेध यज्ञ के करने से जो फल प्राप्त होता है वही मनुष्य को इस कथा के करने से मिलता है..हे देवी! मैंने तुम्हारे सम्मुख यह सब व्रतों में उत्तम व्रत को वर्णन किया है, जिसके करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश हो जाता है.

     

       श्री हरतालिका तीज व्रत कथा समाप्त।।

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