Vote For Note Case: 'वोट के बदले नोट' मामले पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला ! सांसदों और विधायकों को नहीं मिलेगी कानूनी छूट, रिश्वत लेने पर चलेगा मुकदमा
सदन में विधायकों और सांसदों को भाषण या वोट के लिए लुभाने के लिए अब 'वोट के बदले नोट' मामले (Vote For Bribe Case) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बड़ा फैसला सुनाया है. 1998 में नरसिम्हा राव (Narsimha Rao) के फैसले को आज सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है. यानी अब इस तरह के मामले में विधायकों, सांसदों को कानूनी छूट नहीं दी जाएगी. सदन में भाषण या वोट पैसे लेकर कोई देता है तो उनके खिलाफ केस भी चलाया जाएगा. कोर्ट ने इसे रिश्वतखोरी और लोकतंत्र का खतरा बताया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शीर्ष कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है.
वोट के बदले नोट पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सदन में वोटों की पारदर्शिता को दृष्टिगत रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बड़ा फैसला सुनाया है. जहां पिछले 25 सालों से लगातार 'वोट के बदले नोट' मामले के अपने ही पुराने फैसले को शीर्ष कोर्ट ने पलट दिया है. कोर्ट ने 1998 के पीवी नरसिम्हा राव के फैसले को पलटते हए कहा कि जो सांसद और विधायकों को नोट के बदले वोट पर छूट थी. वह मनमानी अब नहीं चल सकेगी. सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने 1998 के उस फैसले को पलट दिया है और सांसदों और विधायकों को इस तरह के मामलों में कानूनी छूट देने से इनकार कर दिया है.
शीर्ष कोर्ट ने दिया 105 अनुच्छेद का हवाला
कोई भी सांसद और विधायक विधानसभा या संसद में वोट और भाषण के संबंध में रिश्वत देता है तो उसपर कार्रवाई की जाएगी. कोर्ट ने 105 अनुच्छेद का हवाला देते हुए कहा कि रिश्वतखोरी मामले में सांसदों को छूट नहीं दी जा सकती. जबकि 1998 के पीवी नरसिम्हा राव के फैसले में सांसदों, विधायकों को सदन में भाषण या मतदान के लिए रिश्वतखोरी के खिलाफ वाले मुकदमे से छूट दी गई थी. पर अब कोर्ट ने अपने उस फैसले को पलट दिया है.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इससे इस तरह से जनप्रतिनिधियों और सदस्यों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी का मामला हमेशा ईमानदारी को खत्म करता है. कोर्ट के इस फैसले के बाद कोई भी सांसद या विधायक रिश्वतखोरी मामले में मतदान हो या भाषण वाले मामले में किसी भी के तरह की कानूनी कार्रवाई से नहीं बच पाएंगे.
26 वर्ष पहले कोर्ट ने सुनाया फैसला अब पलटा
गौरतलब है कि वर्ष 1993 में नरसिम्हा राव सरकार के समर्थन में वोट के लिए सांसदों को घूस दिए जाने का आरोप लगा था. जिस पर 1998 में कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि सांसदों को इस विशेषाधिकार की छूट है तब से 26 वर्ष हो चुके हैं इसके बाद कोर्ट ने अपने ही उस फैसले को पलट दिया. 1998 के नरसिम्हा राव सरकार के समय पर यह आदेश दिया गया था. जहां 26 साल बाद इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है.
1998 में पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मुद्दे को लेकर एक बहुमत तय किया था कि जनप्रतिनिधियों पर कोई भी मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से यह अहम फैसला सुनाया है उसे एक बात तो अब साफ है कि अब कैश फॉर वोट की नीति के साथ कोई भी सांसद-विधायक सदन में मतदान और भाषण में घूसखोरी मामले में सम्मिलित पाए गए तो कानूनी कार्रवाई तय है. 105 अनुच्छेद के तहत रिश्वतखोरी की छूट नहीं दी जाती है.
सीजे ने क्या कहा
सीजे डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मुद्दे पर एकजुट होकर गहनता से चर्चा की हमने पीवी नरसिम्हा राव मामले में दिए गए फैसले से असहमति जताई है. इसलिए अब इस फैसले को पलटने का निर्णय लिया है. नरसिम्हा राव मामले में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों को वोट के बदले नोट लेने के मामले में अभियोजन से छूट देने का फैसला सुनाया था, लेकिन रिश्वतखोरी आपराधिक कृत्य है. सदन में भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वतखोरी जरूरी नहीं है.