Supreme Court Electoral Bonds: लोकसभा चुनाव के एलान से पहले सरकार को बड़ा झटका ! सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक करार देते हुए लगाई रोक, जानिए क्या है इलेक्टोरल बांड स्कीम?
Supreme Court Electroal Bond
लोकसभा चुनाव से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड्स (Electoral Bonds) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड को पूरी तरह से असंवैधानिक (Unconstitutional) करार दिया है और इस पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है हर नागरिक को पूरा जानने का अधिकार है कि चंदा (Donation) किसके द्वारा दिया गया, किस पार्टी को दिया. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई (Sbi) को सख्त निर्देश दिए है कि 2019 से अबतक दिए गए फंडों की जानकारी चुनाव आयोग को 6 मार्च तक उपलब्ध करायें. जिसके बाद चुनाव आयोग 13 मार्च तक वेबसाइट के जरिये पूरे ब्यौरे की जानकारी अपलोड करे.
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, चुनावी बांड पर लगाई रोक
लोकसभा चुनाव से पहले ही गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए सरकार को झटका दिया है. दरअसल इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) यानी चुनावी बांड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इस स्कीम को असंवैधानिक (Unconstitutional) बताया है. जिस पर कोर्ट ने पूरी तरह से रोक लगा दी है. चुनावी बांड की जानकारी न देना जनता के अधिकारों का हनन है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि हर व्यक्ति और हर नागरिक को जानने का अधिकार है कि सरकार के पास चंदा कहां से आता है, किसके द्वारा दिया जाता है. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि काले धन पर रोक लगाने के लिए चुनावी बांड के अलावा और भी तरीके हैं.
2019 से अबतक दिए गए चंदों का ब्यौरा दे एसबीआई
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों को 2019 से लेकर अब तक के दिये गए चंदो की पूरी जानकारी एसबीआई दे. कोर्ट ने एसबीआई को यह निर्देश दिया है कि राजनीति दलों को जो भी चुनावी बांड के माध्यम से जो चंदा दान किया गया उसका पूरा ब्यौरा चुनाव आयोग को 6 मार्च तक उपलब्ध करा दे और चुनाव आयोग 13 मार्च तक वेबसाइट पर ब्यौरे की जानकारी अपलोड कर दे.
हर नागरिक को जानने का पूरा अधिकार
यही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा है कि आम लोगों को यह जानकारी जरूरी है कि जिन दलों को वह वोट दे रहे हैं तो उन्हें कितना चंदा मिला, फंडिंग की व्यवस्था क्या है. अदालत में यह भी कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग की किसी और व्यवस्था पर विचार करना होगा और कुछ ऐसी योजना के बारे में विचार करना होगा जिसे पारदर्शिता आए और उन्हें फंडिंग मिल सके. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि राजनीतिक दलों को चंदा करने वालों की पहचान गुप्त रहेगी तो इससे रिश्वतखोरी का मामला बन सकता है.
क्या है इलेक्टोरल बांड स्कीम?
वर्ष 2017 में केंद्र सरकार के द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को संसद में बिल के जरिए पेश किया था. 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पास होने के बाद इसका नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया था. इस स्कीम का मकसद था कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों को गुप्त तरीके से चंदा दिया जाना. इसकी प्रक्रिया जो भी रजिस्टर्ड पार्टी है उसे यह बांड दिया जाता है. यह बांड पाने का हकदार वही हो सकता है जिसे पिछले चुनाव में एक फीसदी या उससे अधिक वोट मिले तो ही वह रजिस्टर्ड पार्टी चंदा पा सकती है.
सरकार ने एसबीआई को दे रखा है बांड देने का अधिकार
सरकार के द्वारा बताया गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए काले धन पर अंकुश लगेगा और चुनाव में चंदे के तौर पर दिए जाने वाले इस रकम का हिसाब-किताब भी रखा जा सकता है. जिससे फंडिंग में सुधार होगा. सरकार ने चुनावी बांड खरीदने की अनुमति एसबीआई को दे रखी है कोई भी भारतीय नागरिक, कंपनी या संस्था इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है. जब कोई बांड की घोषणा होती है इसे तय एसबीआई ब्रांचों से 1000 से लेकर एक करोड़ तक का बांड खरीदा जा सकता है. बैंक से बांड खरीदने के बाद चंदा देने वाला जिस पार्टी को चाहे वह उसे उसका नाम भरकर उसे चुनावी बांड दे सकता है.