वायरल पोस्ट:बुर्का पहन शाहीन बाग के धरने में शामिल हुए पत्रकार रवीश कुमार.क्या है सच्चाई जानें..!
इन दिनों सोशल मीडिया में एक तस्वीर वायरल हो रही है..जो देश के वरिष्ठ पत्रकार रवीश की होने का दावा किया जा रहा है..आखिर क्या है इस वायरल पोस्ट की सच्चाई जानें..
डेस्क:सोशल मीडिया में हर रोज अनगिनत पोस्ट डाली जाती हैं।इनमें से कुछ पोस्ट पूरी तरह से फ़र्जी और झूठ होती हैं।इन दिनों ऐसी ही एक पोस्ट तस्वीर के साथ वायरल हो रही है।और यह दावा किया जा रहा है कि तस्वीर देश के जाने माने टीवी पत्रकार रवीश कुमार की है।
यह तस्वीर दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए के विरोध में चल रहे प्रदर्शन की बताई जा रही है।और दावा किया जा रहा है कि पत्रकार रवीश कुमार बुर्का पहन धरने में शामिल हुए हैं।इस तस्वीर के साथ ही कई तरह के कमेंट रवीश कुमार को लेकर किए जा रहे हैं। (ravish kumar)
अब इस वायरल पोस्ट को लेकर रवीश कुमार ने खुद फेसबुक में पोस्ट लिखकर पूरी सच्चाई बताई हैं।उन्होंने लिखा कि यह तस्वीर शकीला बेगम की है।जो दिल्ली के शाहीन बाग में ही रहतीं हैं और शाहीन बाग में चल रहे धरने में नियमित रूप से शामिल होती हैं।
रवीश कुमार ने लिखा कि आई टी सेल के मुख्य कार्यों में एक काम रवीश कुमार को लेकर अफ़वाहें फैलाना भी है। आई टी सेल एक मानसिकता भी है। मुझे लेकर हर समय कोई न कोई सामग्री आती रहती है। आयी टी सेल मुझे फँसाने के लिए कितनी मेहनत करता है। वो मुझसे मिलते जुलते चेहरों की तलाश में भी रहता है जिसे रवीश कुमार बता कर बदनाम किया जा सके।
पिछले कुछ दिनों से एक महिला को लेकर अफ़वाह उड़ाई गई कि रवीश कुमार है। जो चेहरे पर पट्टी बांध कर शाहीन बाग में बैठा है। ये सारे काम कभी स्माइली लगा कर तो कभी प्रश्नवाचक चिन्ह लगाकर किए जाते हैं। जब कई माध्यमों से पहली तस्वीर आई तो पता करने का मन किया। क्योंकि इसे कई हैंडल से शेयर किया गया है। मानसिक रूप से गुलाम हो चुके कई लोग मेरी पोस्ट के कमेंट में इस तस्वीर को पोस्ट करने लगे हैं।
मुन्ने भारती को काफ़ी मेहनत करनी पड़ गई। आख़िर पता लगा कि जिस तस्वीर को रवीश कुमार बताया जा रहा है वो शकीला बेगम की है। जो वहीं के एक मोहल्ले में रहती हैं।
आयी टी सेल को भी पता है कि झूठ पकड़ा जाएगा लेकिन ये सारा कुछ इसलिए किया जाता है ताकि आपके भीतर जो धारणा ठूँसी गई है उसकी हर समय पुष्टि होती रहे कि वो अपनी जगह पर है या नहीं। जो लोग आई टी सेल की बनाई धारणा की चपेट में आए हैं वो इसे देख कर वही बातें सोचते रहें। कभी बाहर न निकल सकें। आई टी सेल लोगों को सियासी तौर पर मानसिक ग़ुलाम बनाए रखने का मनोवैज्ञानिक प्रोजेक्ट है। खेल नहीं है।