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UPPCL News: यूपी में बिजली विभाग का विरोध प्रदर्शन जारी ! क्या है आगरा और ग्रेटर नोएडा का श्वेत पत्र?
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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बिजली विभाग (UPPCL) निजीकरण के खिलाफ प्रदेश भर में लगातार विरोध प्रदर्शन जारी है. संघर्ष समिति ने आगरा और ग्रेटर नोएडा के निजीकरण पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग की है. कर्मचारियों का आरोप है कि निजीकरण से पावर कॉरपोरेशन को भारी घाटा हुआ, जबकि निजी कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं
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Fatehpur UPPCL News: उत्तर प्रदेश में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आह्वान पर प्रदेशभर में बिजली कर्मियों द्वारा निजीकरण के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है. राजधानी लखनऊ (Lucknow) में मध्यांचल मुख्यालय और शक्ति भवन पर बड़ी संख्या में बिजली कर्मचारियों ने विरोध जताया.
समिति ने स्पष्ट रूप से मांग की है कि प्रदेश में निजीकरण को आगे बढ़ाने से पहले ग्रेटर नोएडा और आगरा में हुए निजीकरण का श्वेत पत्र जारी किया जाए, ताकि इसकी असल सच्चाई जनता के सामने आ सके.
बिजली विभाग का निजीकरण: घाटे का सौदा?
फतेहपुर (Fatehpur) बिजली विभाग (UPPCL) संघर्ष समिति के पदाधिकारी धीरेंद्र सिंह ने कहा कि पूरे देश में बिजली निजीकरण एक विफल प्रयोग साबित हुआ है.
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में भी ग्रेटर नोएडा का 1993 में और आगरा का 2010 में निजीकरण किया गया था, लेकिन इन दोनों ही मामलों में पॉवर कॉरपोरेशन को भारी नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा कि इन शहरों में बिजली आपूर्ति के निजीकरण से जनता को असुविधाओं का सामना करना पड़ा है और पॉवर कार्पोरेशन को करोड़ों का घाटा हुआ है.
निजीकरण से हुआ 2434 करोड़ का नुकसान
संघर्ष समिति के पदाधिकारी संदीप पराशर ने बताया कि आगरा में वर्ष 2023-24 के दौरान पॉवर कारपोरेशन ने 5.55 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदी और टोरेंट कंपनी को मात्र 4.36 रुपये प्रति यूनिट में बेच दी. इससे पिछले वित्तीय वर्ष में ही पॉवर कॉरपोरेशन को 275 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. वहीं, पिछले 14 वर्षों में यह घाटा 2434 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है.
उन्होंने बताया कि आगरा में बिजली का औसत टैरिफ 7.98 रुपये प्रति यूनिट है, जबकि टोरेंट कंपनी पॉवर कारपोरेशन से बिजली 4.36 रुपये प्रति यूनिट पर खरीदकर 7.98 रुपये में बेच रही है. इससे टोरेंट को लगभग 800 करोड़ रुपये का वार्षिक मुनाफा हो रहा है, जबकि पॉवर कारपोरेशन को प्रतिवर्ष 1000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान उठाना पड़ रहा है.
ग्रेटर नोएडा: 30 साल में भी नहीं बना बिजली उत्पादन संयंत्र
संघर्ष समिति ने बताया कि 1993 में ग्रेटर नोएडा का विद्युत वितरण निजी कंपनी को सौंपते समय शर्त रखी गई थी कि 54 महीनों के भीतर कंपनी को अपना बिजली उत्पादन संयंत्र स्थापित करना होगा. लेकिन 30 साल बाद भी नोएडा पॉवर कंपनी ने एक मेगावाट का भी बिजली संयंत्र नहीं लगाया.
वर्षों तक पॉवर कारपोरेशन महंगी दर पर बिजली खरीदकर नोएडा पावर कंपनी को सस्ते दामों में बेचता रहा, जिससे सरकार को भारी घाटा हुआ और निजी कंपनियां मुनाफा कमाती रहीं.
ग्रेटर नोएडा एक औद्योगिक क्षेत्र है, जहां बिजली की मांग अधिक है, लेकिन निजीकरण के चलते यहां की बिजली व्यवस्था पूरी तरह से निजी कंपनियों के लाभ के अनुरूप संचालित की जा रही है.
प्रदेशभर में बिजली कर्मियों का विरोध प्रदर्शन जारी
संघर्ष समिति ने सरकार से सवाल किया है कि जब निजीकरण का प्रयोग असफल साबित हो चुका है, तो इसे पूरे उत्तर प्रदेश के 42 जिलों में लागू करने का निर्णय क्यों लिया जा रहा है? समिति का कहना है कि सरकार को पहले ग्रेटर नोएडा और आगरा में हुए निजीकरण की असल सच्चाई जनता के सामने लानी चाहिए.
आज फतेहपुर के हाइडिल कॉलोनी समेत वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, एटा, झांसी, बांदा, बरेली, देवीपाटन, अयोध्या, सुल्तानपुर, हरदुआगंज, पारीछा, जवाहरपुर, पनकी, ओबरा, पिपरी और अनपरा में भी बिजली कर्मियों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया.
संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने निजीकरण का निर्णय वापस नहीं लिया, तो प्रदेश भर में आंदोलन को और तेज किया जाएगा. कर्मचारियों और आम जनता के हितों की रक्षा के लिए संघर्ष जारी रहेगा
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