सावन विशेष: फतेहपुर का यह शिव मंदिर जिसके इतिहास में हैं जयपुर के राजा जानें मंदिर औऱ शिवलिंग की कहानी!
सावन का पावन महीना शुरू है। युगान्तर प्रवाह की सावन विशेष सीरीज़ में पढ़ें फतेहपुर के शिव मंदिरों का इतिहास औऱ उनके रहस्यों के बारे में।इस रिपोर्ट में पढ़ें अशोथर में स्थित शिव मंदिर मोटे महादेव के बारे में. Fatehpur shiv mandir mote mahadev ashothar
Fatehpur Mote Mahadev Mandir Ashothar: सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। फतेहपुर के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में इस महीने भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। ऐसा ही एक शिव मंदिर फतेहपुर के अशोथर में स्थित है जहाँ वैसे तो पूरे साल शिव भक्तों का आना जाना लगा रहता है लेकिन सावन माह में यहां भारी भीड़ होती है।Fatehpur shiv mandir history
मंदिर का इतिहास..
मंदिर में स्थापित शिवलिंग की खोज कब हुई कैसे हुई इसकी सटीक जानकारी तो नहीं मिलती लेकिन बताया जाता है कि इसका इतिहास हजारों साल पुराना है ऐसी भी मान्यता है कि महाभारत काल के अश्वस्थामा यहां पूजा करने आते थे औऱ आज भी भोर पहर हमेशा शिवलिंग पर ताज़े फूल बेलपत्र आदि चढ़े रहतें हैं।पूरे क्षेत्र में अभी भी यही मान्यता है कि हर रोज यहाँ द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वस्थामा पूजा करने आते हैं। कुछ लोग यह भी बताते हैं कि अशोथर नाम भी अश्वस्थामा के नाम पर ही पड़ा है। शिवमंदिर के निकट ही अश्वस्थामा मन्दिर बना हुआ है पहले इस क्षेत्र को द्रोणगिरी के नाम से भी जाना जाता था। इस स्थान पर पुरात्तव विभाग का बोर्ड भी लगा हुआ है।Ashothar Shiv Mandir mote mahadev
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इस शिवलिंग की खोज कब हुई इसकी सही जानकारी कोई नहीं बता सकता है हालांकि बुजुर्गों द्वारा यह बताया जाता है कि यहाँ बहुत घना जंगल हुआ करता था लोग यहाँ अपने जानवर चराते थे उसी दौरान लोगों को शिवलिंग के बारे में पता चला था। यह भी कहा जाता है कि कुछ लोगों ने मंदिर की शिवलिंग को निकालने की कोशिश की लेकिन क़रीब सात तल तक खुदाई हुई औऱ हर तल में एक अर्घा मिलता रहा।लेकिन मूर्ति का अंत नहीं मिला।
पुजारी जी ने बताया कि एक बार जयपुर के तत्कालीन राजा बहुत बीमार हो गए थे किसी ने उनको अशोथर के शिवमन्दिर का दर्शन कर आने की बात कही जिसके बाद वह यहां आए और शिवलिंग के दर्शन करने के बाद ठीक हो गए। जिसके बाद उन्होंने मंदिर निर्माण कराने की अनुमति अशोथर के राजा से माँगी। राजा की अनुमति के बाद अपने एक विश्वासपात्र सेवादार को यहाँ धन देकर मंदिर का कायाकल्प कराने के लिए भेजा था। लेकिन सेवादार ने मंदिर में कम अपने निजी निर्माण में राजा द्वारा दिया गया धन प्रयोग कर लिया गया था।मंदिर में स्थापित शिवलिंग ईशान कोण काशी विश्वनाथ धाम की ओर झुकी हुई है।जिससे इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है।
पुजारी श्री शुक्ला ने बताया कि मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण ज्ञानेंद्र शुक्ला बंधुओं द्वारा कराया गया है।