Chaitra Navratri Shailputri Mata: चैत्र नवरात्रि प्रारम्भ ! प्रथम दिन मां शैलपुत्री का करें विधि-विधान से पूजन ! समस्त संकट होंगे दूर, जानिए पौराणिक कथा
चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) के पावन 9 दिनों की शुरुआत दुर्गा माता के 9 स्वरूपों में से एक प्रथम स्वरूप शैलपुत्री माता (Shailputri Mata) के पूजन से की गई. जगह-जगह प्रसिद्ध देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ तड़के से ही उमड़ी रही. माता के जयकारों का स्वर मन्दिर में गुंजयमान हो रहा है. आज आपको इस आर्टिकल के जरिये बताएंगे माता के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री के पूजन और महत्व के बारे में.
शैलपुत्री की करें आराधना संकट होंगे दूर
चैत्र नवरात्रि 2024 (Chaitra Navratri) का आरम्भ हो चुका है. मंगलवार को समस्त देवी मंदिरों में नवरात्रि (Navratri) को लेकर भक्तों (Devotees) की भीड़ उमड़ पड़ी है. इन दिनों जातकों को उपवास (Fast) रखकर माता की आराधना (Worship) करनी चाहिये. आज प्रथम दिन माता शैलपुत्री (Shailputri) का दिन है. शैल पुत्री माता के स्वरूप को देखेंगे तक उनके चेहरे पर बहुत तेज दिखता है. विधि विधान से उपवास व पूजन करने वालों पर माता कृपा करती हैं. समस्त संकटों का नाश होता है घर में सुख-समृद्धि आती है.
माता के स्वरूप में है अत्यंत तेज
शैलपुत्री माता (Goddess Shailputri) के स्वरूप में अत्यंत तेज है. इनके बाएं हाथ में कमल फूल और दाएं हाथ में त्रिशूल हैं. माता का यह दिव्य स्वरूप बेहद अद्भुत हैं. शैलपुत्री माता को लेकर ऐसी मान्यता चली आ रही है. हिमालय के घर पुत्री रूप में शेलपुत्री माता ने जन्म लिया था. इन्हें पार्वती (Parvati) और उमा के नाम से भी जाना जाता है. माता शेलपुत्रि का जन्म शैल यानि पत्थर से हुआ है. माता बड़ी दयालु और कृपालु हैं, इनकी सवारी वृषभ है.
भोग में सफेद चीज़ों का करें प्रयोग
दुर्गा माता के 9 स्वरूपो में आज शैलपुत्री की पूजा की जा रही है. प्रथम दिन होने के चलते ब्रह्म मुहुर्त में उठकर स्नान करके घटस्थापना मुहुर्त के बाद इनका स्मरण करते हुए पूजन का संकल्प लें. माता को भोग में सफेद चीज़ों का प्रयोग करें, पुष्प और सफेद वस्त्र अर्पित करें. अच्छे विचारों और मन शुद्ध रखकर माता शैलपुत्री का स्मरण करें. कुँवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की भी प्राप्ति होती है. इसके साथ ही समस्त कष्टों का नाश होता है और बिगड़े काम बन जाते है, धन, सुख-समृद्धि आती है.
ये है कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आव्हान किया था. जिसमें समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया वहीं शिवजी को दक्ष ने आमंत्रित नहीं किया. जबकि सती बार-बार यज्ञ में जाने के लिए शिव जी से कहने लगीं. लेकिन शंकर जी ने कहा कि जब उन्हें आमंत्रित ही नहीं किया गया तो वह कैसे जा सकते हैं. सती के मन को देखते हुए उन्हें उस यज्ञ में जाने दिया. सती को प्रजापति के पास पहुंचता देख सभी दंग रह गए तो वही मां ने सती को स्नेह किया.
जबकि बहनों के मन में सती के प्रति उपहास से भाव दिखाई पड़ रहे थे और दूसरी तरफ प्रजापति दक्ष शंकर जी के बारे में अपमानजनक बात सती से कहता रहा. सती को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा. शिव जी के हुए अपमान को देख सती ने यज्ञ कुंड में अपने आप को भस्म कर दिया. जब यह बात शिवजी को पता चली तो वह अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने दक्ष का यज्ञ विध्वंस कर दिया इसके बाद हिमालय की पुत्री के रूप में सती ने जन्म लिया जो शैलपुत्री कहलाई.