Shardiya Navaratri Skandmata Pujan: माँ दुर्गा के पांचवें स्वरूप 'स्कंदमाता' की आज करें आराधना! शिवपुत्र स्वामी कार्तिकेय से जुड़ा है पौराणिक महत्व
Navratri 5th Day: शारदीय नवरात्रि का आज 5 वां दिन है, इस दिन माता दुर्गा के 5वें स्वरूप स्कंदमाता के पूजन का विशेष महत्व है. यूँ तो 9 दिन ही माता के दिन हैं, और सभी दिनों में विधि-विधान से मां की आराधना की जाती है. माँ के पूजन से संतान सुख की प्राप्ति और भक्तों में धर्मिक उन्नति का अनुभव प्राप्त होता है, पार्वती माता ने स्कंद रूप लेकर पुत्र कार्तिकेय युद्ध के लिए तैयार किया और स्वामी कार्तिकेय ने तारकासुर राक्षस का अंत किया.
हाईलाइट्स
- शारदीय नवरात्रि के 5वें दिन माँ स्कंदमाता की करें आराधना, संतान सुख की प्राप्ति
- माँ दुर्गा का 5वां स्वरूप, भगवान कार्तिकेय से जुड़ा है महत्व
- कार्तिकेय जी को स्कंद कहते हैं, तारकासुर का कीयय था वध, माता को केला अर्पित करें
Worship Skandmata the 5th form of Maa Durga : नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए, माता की सच्चे मन से आराधना करने से मां भक्तों पर कृपा करती हैं. स्कंदमाता पार्वती जी है, माता का पुत्र के प्रति प्रेम स्कंदमाता के रूप में दिखाया गया है. जानिए स्कंदमाता कैसे नाम पड़ा , माता की आराधना किस तरह से करें, इसके पीछे क्या पौराणिक कथा प्रचलित है.
आज स्कंदमाता की करें आराधना
शारदीय नवरात्रि के 9 दिनों में माता दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जा रही है, हर दिन माँ के स्वरूपों के दर्शन का विशेष महत्व है. आज नवरात्रि का 5वां दिन है, इस दिन दुर्गा माता के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की पूजा और आराधना की जाती है. स्कंदमाता की आराधना करने वालों को संतान सुख की प्राप्ति होती है, वह दीर्घायु होती है. इसके साथ ही मन में भक्ति, ऊर्जा का संचार होता है.
तारकासुर नामक राक्षस के अंत से जुड़ा है महत्व
ऐसा कहते हैं कि, तारकासुर नामक राक्षस का अंत केवल शिव जी के पुत्र के हाथों ही होना था, तो माता पार्वती ने स्कंदमाता का रूप लिया और पुत्र कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया, स्वामी कार्तिकेय ने आखिरकार तारकासुर का अंत कर दिया. कार्तिकेय जी को स्कंद के नाम से भी जाना जाता है.
मां स्कंदमाता का अद्भुत स्वरूप
चार भुजाओं वाली स्कंदमाता का स्वरूप अद्भुत है, वे शेर पर सवार होकर पुत्र कार्तिकेय को अपनी गोद मे एक हाथ से पकड़े हुए है,जबकी दो हाथों में कमल का पुष्प पकड़े हुए हैं. एक भुजा ऊपर की ओर उठी हुई दिखती है, कमल के आसन पर विराजती है इसलिए इन्हें पद्मासना भी कहते हैं. स्कंद का अर्थ होता है ज्ञान को व्यवहार में लाते हुए कर्म करना.
ऐसे करें पूजन, केले का भोग लगाएं
स्कंदमाता के पूजन के लिए सुबह स्न्नान और माता का ध्यान करें और पीले वस्त्र पहनकर पूजन प्रारम्भ करें. पीले या सुनहरे रंग के वस्त्र पहनना स्कंदमाता के पूजन में शुभ माना गया है.पीले पुष्प से मां का श्रृंगार करें तो बहुत अच्छा रहेगा, पीले फल, फूल, मिठाई, लौंग, इलाइची, अक्षत, धूप, दीप और केले का फल माँ को अर्पित करें. फिर आरती करें, पूजा के बाद क्षमा याचना करके दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें, इस तरह से विधि विधान से पूजन अर्चन करने से मां प्रसन्न होती है और अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण करती हैं.मां को केले का भोग अति प्रिय है. मां को आप खीर का प्रसाद भी अर्पित कर सकते हैं.
मां स्कंदमाता का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
पांचवे दिन पहनें सफेद रंग के वस्त्र
पौराणिक मान्यता के अनुसार सफेद रंग माता को पसंद है. ये रंग शांति का माना जाता है. इसलिए मां को प्रसन्न करने के लिए सफेद रंग के कपड़े पहनें और विधिविधान से पूजन करें.