
Sant Ravidas Jayanti: 'मन चंगा तो कठौती में गंगा', जानिए संत रविदास कौन थे ! क्यों मनाई जाती है रविदास जयंती?
संत रविदास जीवन परिचय
हमारा देश संत-महात्माओं और महापुरुषों से जुड़ा हुआ है. एक से एक प्रभावशाली सन्त-महात्माओं के मार्गदर्शन की बदौलत लोगों ने अपने जीवन की नई दिशा चुनी. बिना संतों और गुरुओं के आशीर्वाद से जीवन की कल्पना करना ही बेकार है. एक ऐसे महान संत जो राम और कृष्ण के परम भक्त थे संत रविदास जी (Saint रविदास ji) आज उनकी जयंती है उन्होंने जात-पात और ऊंच-नीच के भेदभाव को दूर कर समाज को एकता सूत्र में बांधने का कार्य किया.

सन्त रविदास जी की आज मनाई जा रही जयंती
शनिवार यानी आज पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ संत रविदास जयंती (Saint Ravidas Jayanti) मनाई जा रही है. जगह-जगह रविदास जी की भव्य शोभा यात्राएं और भजन-कीर्तन गाते हुए उनके अनुयायी शोभायात्राएं निकाल रहे हैं. चलिए आपको इस आर्टिकल के जरिए बताएंगे संत रविदास जयंती कौन थे और उनके जीवन काल से जुड़ी एक कथा व उनका क्या योगदान रहा यह सब आपतक पहुँचाएंगे.
माघ पूर्णिमा को हुआ था सन्त रविदास जी का जन्म
रविदास जी (Ravidas Ji) का जन्म संवत् 1433 में यूपी के गोवर्धनपुर गांव में माघ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन हुआ था. क्योंकि आज पूर्णिमा तिथि है ऐसा माना जाता है कि महाराज जी का जन्म माघ पूर्णिमा (Maagh Purnima) को हुआ था. रविदास जी के पिता राघव दास थे और उनके माता का नाम कर्म बाई थी. उनके माता-पिता चर्मकार थे रविदास जी के गुरु महान संत कबीर दास को बताया गया है. बचपन से ही उनके अंदर अद्भुत व आलौकिक शक्तियां थीं. पिता जूते बनाने का काम करते थे. बड़े होते ही रविदास जी ने अपने पिता के इस व्यवसाय को अपनाया और साथ में ही प्रभु की भक्ति भी करते रहे.
रविदास जी प्रभु की भक्ति में लीन होते गए उनके मन में ही बस अपने आराध्य की छवि बस गई थी फिर आगे उन्होंने अध्यात्म और संत सेवा को माध्यम बनाया. उन्हें संत कबीर दास का शिष्य भी कहा जाता है. रविदास जयंती खास तौर पर सिख धर्म का मुख्य त्योहार माना जाता है और यह पूरे संपूर्ण भारत में मनाया जाता है. व्यवसाय में जो कमाई होती थी उसे सन्त सेवा में लगाया.
उनका ये दोहा बेहद प्रचलित, अलौकिक शक्तियां थीं प्राप्त
रविदास जी के बताये गए उपदेशों और शिक्षा से लोगों को बड़ा सकारात्मक सपोर्ट मिलता रहा है. हमेशा आपसी सद्भाव और प्रेम से रहने की सभी को उन्होंने शिक्षा दी है. यही कहा जाता है कि उनका जन्म माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था और उस दिन रविवार था जिसके कारण उनका नाम रविदास रखा गया हालांकि उन्हें और भी नाम से जाना जाता है. जैसे रविदास, रैदास, रूही दास और रोहित दास जैसे कई नाम से उन्हें जाना गया है. 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' उनका दोहा बेहद प्रचलित है.
ऐसा कहा जाता है की बचपन से ही उनके अंदर अद्भुत और अलौकिक शक्तियां थी. जैसे कि कई लोगों को जीवन देने, पानी पर पत्थर तैरने जैसे चमत्कार व कुष्ठ रोगियों को ठीक करने जैसे चमत्कार और कई किस्से उनके चर्चित है. अधिकांश उनका समय प्रभु राम और कृष्णा जी की आराधना में ही लगा रहता था इसके बाद उन्हें एक बड़े संत का दर्जा प्राप्त हुआ.

एक कथा और चमत्कार है प्रचलित
कहते हैं संत रविदास कुटिया बनाकर रहते थे और वहीं पर अपने पिता के व्यवसाय को आगे बढ़ाते रहे. जूते बनाकर अपने गुरुजनों की और संतों की सेवा करते थे. एक कथा प्रचलित है उनके पास एक ब्राह्मण आया और कहा कि गंगा स्नान करने जाना है मुझे जूते चाहिए. रविदास जी ने बिना पैसे लिए ब्राह्मण को जूते दे दिए और उसके साथ ही उन्होंने ब्राह्मण को एक सुपारी भी दी और उन्होंने कहा कि इसे मेरी ओर से गंगा माता को दे देना. ब्राह्मण गंगा स्नान की ओर बढ़ा रविदास जी की दी गयी सुपारी की उसे याद आयी तो ब्राह्मण ने वह सुपारी गंगा में उछाल दी.
इसके बाद अद्भुत चमत्कार ब्राह्मण ने अपनी आंखों से देखा साक्षात गंगा मैया के दर्शन हुए और उन्होंने उसे एक सोने का कड़ा दिया और कहा कि इसे रविदास को दे देना. ब्राह्मण तत्काल ही रविदास जी के पास पहुंचा और हाथ जोड़कर उन्हें नमन किया कि आज तक मुझे कभी इस तरह का चमत्कार नहीं दिखा. रोज में गंगा स्नान करने जाता हूं लेकिन कभी गंगा माता ने दर्शन नहीं दिए केवल आपकी सुपारी मात्र देने से ही माता प्रकट हो गई.
ब्राह्मण को दर्शन देने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई. लोगों ने इसे पाखंड समझा और उनकी परीक्षा लेना शुरू कर दी लेकिन रविदास जी सारी बातों को सुनते रहे और अपने भजन कीर्तन में लगे रहे. एक बर्तन में वह जल भरकर हमेशा रखते थे. एक दिन गंगा मैया प्रकट हुई और दूसरा सोने का कड़ा भी उन्होंने रविदास जी को भेंट कर दिया. तभी लोगों में उन पर विश्वास बहुत बढ़ गया और उनकी हर तरफ जय जयकार होने लगी.

