
Barabanki Lodheshwar Mahadev Mandir : सावन स्पेशल-सतयुग,त्रेता और द्वापर युग से जुड़ा है इस शिवमंदिर का इतिहास,जानिए क्यों पड़ा इस प्रसिद्ध मंदिर का लोधेश्वर नाम
उत्तर प्रदेश के इस शिव मंदिर में सतयुग ,त्रेता और द्वापर युग के प्रमाण मिलते हैं.देश के 51 प्रसिद्ध शिवलिंगों में से एक बाराबंकी जिले में घाघरा नदी के तट पर बसा यह लोधेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में विख्यात और अनूठा है. यहां से 90 किलोमीटर की दूरी पर राजा राम की अयोध्या नगरी है. सावन और शिवरात्रि के दिनों में यहां पर लाखों की संख्या में भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है. सबसे ज्यादा इसी शिव मंदिर में कांवड़िये गंगा नदी का जल लेकर यहां पहुंचते हैं.. ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन करने आए हुए भक्त पर हमेशा

हाईलाइट्स
- यूपी के बाराबंकी में स्थित है प्रसिद्ध लोधेश्वर महादेव मंदिर
- सतयुग, त्रेता और द्वापर युग से जुड़ा है इस मन्दिर का इतिहास
- लोधेश्वर में लाखों की तादाद में उमड़ता है भक्तों का हुजूम, मान्यता है कि दर्शन करने से बाबा की कृपा ब
History Of Barabanki Lodheshwar Mahadev : हर-हर महादेव, ओम नमः शिवाय के जयकारों से लोधेश्वर महादेव मन्दिर में भक्त पहुंचने लगे हैं, सावन के दिनों में तो भक्तों का अपार हुजूम यहां देखने बनता है. पौराणिक रहस्यों से जुड़ा और महाभारतकालीन इस शिव मंदिर का अपना अलग इतिहास है.यहां त्रेता,सतयुग व द्वापर युग तक के प्रमाण मिलते हैं. तो चलिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 61 किलोमीटर दूर इस विख्यात शिव मंदिर के बारे में बताते हैं..

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में लोधेश्वर महादेव मन्दिर आस्था का केंद्र है ,पौराणिक इतिहास के मुताबिक यह मंदिर महाभारत कालीन है. महाभारत मे भी इस शिवमन्दिर का उल्लेख किया गया है.यहां के महंत पंडित तिवारी जी ने बताया कि बारह वन विख्यात है बाराबंकी नाम, है प्रसिद्ध भूखंड पे लोधेश्वर सरनाम..इस मंदिर में सभी युगों के प्रमाण मिलते हैं.
वराह भगवान, लवकुश,और पांडवों ने की थी पूजा
ऐसा कहा जाता है कि सतयुग में वराह भगवान ने लोधेश्वर बाबा की पूजा की थी,त्रेता में प्रभू श्रीराम और माता सीता के पुत्र लव और कुश ने पूजन किया. और द्वापर युग में महाभारत काल के दौरान जब पांडव माता कुंती के साथ अज्ञातवास में थे तो सभी ने महादेव का पूजन पारिजात वृक्ष के पुष्प से किया था. यहां घाघरा नदी भी है.
ऐसे पड़ा लोधेश्वर नाम
ऐसा भी बताया जाता है ,कि यहां एक किसान लोधीराम अवस्थी हुआ करते थे सिंचाई के दौरान जो जल छोड़ा जाता था वह खेतो में न जाकर एक जगह रुक नहीं रहा था, कुछ देर बाद देखा तो जल एक गड्ढे में जा रहा था.खुदाई करवाई गई तो फावड़ा लगने से खून निकला. लोधीराम व अन्य लोग हैरान रह गए. कुछ ही देर बाद उसी जगह से दूध की धार बहने लगी जब दोबारा खुदवाया तो शिवलिंग दिखाई दिया.तब एक दिन लोधीराम को भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि यहां शिवलिंग स्थापित कर पूजन करो. तबसे लोधीराम के नाम से ही इस मंदिर को लोधेश्वर महादेव मन्दिर कहा जाने लगा. यहां अबतक 64 महंत महंती की सेवा कर समाधि ले चुके हैं.
दूर-दूर से पहुंचता है भक्तों का जत्था
देश के कई राज्य व उत्तर प्रदेश के कोने-कोने से यहां भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं.राजधानी लखनऊ से करीब 61 किलोमीटर की दूरी पर है बाराबंकी. यहां रामनगर तहसील में यह लोधेश्वर महादेव मन्दिर है. देश के प्रसिद्ध 51 शिवलिंगों में से एक बाराबंकी का यह लोधेश्वर महादेव मंदिर है.सावन के दिनों व सोमवार को विशेष महत्व है इस मंदिर का, मन्दिर में भक्त बेलपत्र,जलाभिषेक,धतूरा शिवलिंग पर चढ़ाकर पूजन करते हैं, ऐसा कहा जाता है कि भोलेनाथ के दर्शन मात्र से भक्तों के कष्टों का निवारण हो जाता है.यहां एक कुंड भी है जिसका जल पीने से बीमारियां भी समाप्त हो जाती हैं. बाराबंकी से ही प्रभु श्री राम की नगरी अयोध्या जाने का भी रास्ता है बाराबंकी से अयोध्या की दूरी करीब 90 किलोमीटर की है.

