बुलन्दशहर हिंसा:भीड़..!अब जान ले लेती है।
पश्चिमी यूपी में भड़की गोकशी को लेकर हिंसा ने पूरे यूपी को सुलगा दिया,हिंसा ऐसी की एक बहादुर पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की जान चली गई और साथ ही एक स्थानीय नव युवक.. भी अपनी जान गवां बैठा...पढ़े युगान्तर प्रवाह की एक्सक्लुसिव रिपोर्ट....
बुलन्दशहर: अचानक कुछ लोग भीड़ की शक्ल में इकट्ठा होते हैं,बवाल बढ़ता है औऱ दो लोग अपनी जान गवां बैठते हैं,ये सब अब बहुत आम हो चुका है अनियंत्रित भीड़ पर अब किसी का जोर नहीं रहा,पिछले कुछ सालों में जिस तरह से अनियंत्रित भीड़ ने न जाने कितने ही लोंगो को अपना शिकार बना डाला ये बेहद ही चिंताजनक है औऱ इंसानियत के लिए कलंक हम कब इंसान से हैवान बन गए हमें पता ही नहीं चला,इंसान की जान जानवरों की जान से भी सस्ती हो गई औऱ हम अभी भी 'वशुधैव कुटुम्ब' का नारा बुलंद करते हैं, लेकिन ये नारा शायद अब भारत के लिए बेमानी है।
बुलन्दशहर हिंसा में भीड़ द्वारा मारे गए बहादुर इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की पत्नी बदहवास है चीख चीख कर इंसानियत से सवाल कर रही है कि मेरे पति का कसूर क्या था,उस पत्नी के दुःख का इलाज क्या भीड़ के पास है..?
तो जवाब होगा नहीं क्योंकि इस असहनीय पीड़ा का इलाज शायद वक्त के अलावा किसी के पास नहीं है.
भीड़ का दूसरा शिकार सुमित कुमार नाम का एक स्थानीय नववुवक हुआ जो अपने भविष्य को लेकर कुछ सपने संजोये था पर उसे क्या पता कि इंसान से हैवान बन चुकी भीड़ उसकी भी जान ले लेगी सुमित की मौत के बाद उसका परिवार गहरे सदमे में हैं, माँ का रो रोकर बुरा हाल है सुमित के घर वालों की मानें तो सुमित की उम्र अभी मात्र 21 वर्ष की थी औऱ यूपी पुलिस में भर्ती होने की तैयारी कर रहा था,वह नोएडा में रहकर पढ़ाई करता था,अभी कुछ रोज पहले ही वह गांव आया था पर उसे क्या पता था कि उसके साथ कुछ ऐसा होगा कि उसका वजूद ही खत्म हो जाएगा।
गौरतलब है कि बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या मामले में पुलिस ने अब तक चार लोगों को गिफ्तार किया है. इस बीच एसआईटी ने भी घटनास्थल का दौरा किया है. हत्या के मामले में 27 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज की गई है. उसमें पहले नंबर पर बजरंग दल के जिला संयोजक योगेश राज का नाम है. बीजेपी युवा स्याना के नगराध्यक्ष शिखर अग्रवाल, वीएचपी कार्यकर्ता उपेंद्र राघव को भी किया नामजद किया गया है. इसके अलावा अन्य 60 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया है.
लेकिन सवाल अभी भी वही क्या हम अनियंत्रित होते भीड़तंत्र में लगाम लगा पाएंगे या मौतो का सिलसिला इसी तरह बदस्तूर जारी रहेगा..औऱ हम फ़िर से बस इतना ही कह पाएंगे कि भीड़!अब जान ले लेती है।