दीया,टॉर्च और मोमबत्ती से कैसे दूर होगा कोरोना-सन्तोष..!
पीएम मोदी ने शुक्रवार को देश की जनता से अपील की है कि वह रविवार को रात 9 बजे 9 मिनट के लिए घरों की सभी लाइट बन्द करके अपने अपने घरों के बाहर या बालकनी में खड़े होकर मोमबत्ती, दीया ,टार्च, या मोबाइल की फ़्लश लाइट जलाए..पीएम मोदी की इस अपील पर कई लोगों ने तीख़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है..समाजवादी विचारक व स्वंत्रत लेखक सन्तोष द्विवेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किए हैं..युगान्तर प्रवाह पर पढ़े उनका यह लेख...
संपादकीय:प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लॉकडाउन के बीच एक बार फिर जनता को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने अपने भाषण में एक बार फिर से शिगूफा छोड़ते हुए लोगों से आगामी रविवार 5 अप्रैल को रात 9 बजे, 9 मिनट के लिए घर की बत्तियां बंद कर घर के बाहर दीया, टार्च, मोमबत्ती आदि किसी चीज को जलाकर रोशनी करने को कहा। पीएम मोदी का कहना था कि इससे गरीबों के जीवन का अंधकार दूर होगा और देश में कोरोना के कारण जो अंधकार फैला है वह दूर होगा। अब तक लॉकडाउन के 9 दिनों के बीच ये तीसरी बार है, जब प्रधानमंत्री ने जनता को संबोधित किया है।
कोरोना वायरस के बाद लॉकडाउन के बीच देश भर में जिस तरह से लाखों लोग पलायन कर गए, देश के तमाम राज्यों में जिस तरह गरीबों के बीच भगदड़ मची, लोग रोजी-रोटी और रोजगार के संकट से जूझने लगे, देश के मध्यम वर्ग में भी अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता पैदा हो गई, ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ऐसी किसी बात पर चर्चा नहीं कर देश की जनता को दीया जलाने के कर्मकांड की ओर धकेलना समझ से परे है। सोशल मीडिया पर इसकी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त हुई है। पीयूष मित्रा ने जो लिखा, आप खुद देखिए-
मेरी तरह के कुछ बेवकूफ लोग सोच रहे थे कि
– टेस्ट की संख्या बढ़ाने पर बात होगी।
– डॉक्टरों के पीपीई की संख्या बढ़ने का ऐलान होगा।
– लॉक डाउन की समीक्षा और आगे की योजना पर बात होगी।
– ठप पड़े रोजी रोजगार के बारे में बात होगी।
– बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर बात होगी।
– गेंहू की कटनी का समाधान बताया जाएगा।
यहां तो पंडित जी, एक और कर्मकांड थमा गए। अब समझ आ रहा है कि यह देश क्यों इतना कर्मकांडी है।
वैसे हर चतुर सरकार बेवकूफ जनता के साथ यही व्यवहार करती है। उसे इवेंट और एंटरटेनमेंट में उलझा देती है, ताकि उसकी कमजोरियों पर बातचीत कम हो।
पत्रकार सुमित चौहान लिखते हैं-
मैं सार्वजनिक माफी मांगना चाहता हूं। ये मेरी गलती है कि मैंने देश के प्रधानमंत्री से इस संकट में कुछ राहत भरी पहल की उम्मीद की… अगर मैं अपना पुराना स्टैंड लेकर ही उनका वीडियो देखता तो निराश नहीं होता… वो एक अव्वल जोकर हैं और वो इस जोकरगिरी में मुझे कभी निराश नहीं करते। मैं आगे से इसी स्टैंड के साथ उनका वीडियो संदेश देखूंगा। शायद थोड़ी कम तकलीफ होगी।
दरअसल लोगों का यह गुस्सा गलत नहीं है। देश अभी भयंकर स्वास्थ सेवाओं की कमी से जूझ रहा है। बेरोजगारी का संकट मुंह बाए खड़ा है। कोरोना की वजह से भारत के इतिहास का सबसे बड़ा पलायन देखने में आया है। देश की अर्थव्यवस्था औंधे मुंह गिर पड़ी है। लोगों की जान सांसत में है। पूरा देश डरा हुआ है। कोरोना पोजिटिव पाए गए लोगों की जांच करने वाले स्वास्थकर्मियों को तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अच्छा होता प्रधानमंत्री उन्हें दिलासा देते। अच्छा होता कि वह कंपनियों से कहते कि किसी युवा को नौकरी से नहीं निकालना है। अच्छा होता वो पलायन कर गए लाखों लोगों को भरोसा देते कि वो उनके लिए बेहतर देश बनाएंगे। अच्छा होता कि वो लोगों को यह बताते कि देश में स्वास्थ सेवाओं की अभी क्या स्थिति है। कोरोना से लड़ने के लिए उनकी क्या तैयारी है।
यही बताते कि देश भर के कितने लोगों ने प्रधानमंत्री राहत मदद कोष में योगदान दिया है। यही बता देते कि मुख्यमंत्रियों के साथ मिलकर उन्होंने क्या बात की, और राज्यों की क्या तैयारियां हैं। यही बताते कि पार्टी लाइन से अलग होकर देश के सभी राज्यों की सरकारें कैसे एक साथ मिलकर इस खतरे को रोक देंगी।
अगर वो इतना कुछ कर पाते तो भारत के लोगों में एक भरोसा जगता। वरना अगर थाली और ताली ही बजवानी है और दीया जलाने की अपील ही करनी है तो मोदी जी हम ऐसा करते हैं कि आपकी तस्वीर फ्रेम करवा कर घर में टांग लेते हैं। एक मोदी चालीसा भी बंटवा दीजिये, उसमें ये निर्देश दे दीजिए कि साल के 365 दिन हमें क्या-क्या करना है। आप भी निश्चिंत, आपकी रियाया (जनता) भी निश्चिंत। … हद है, बत्ती जला कर आप गरीबों के जीवन से अंधकार मिटाएंगे।
(नोट:-लेखक संतोष द्विवेदी सपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं इनके द्वारा लिखे इस लेख के लिए युगान्तर प्रवाह उत्तरदायी नहीं होगा)